दुनिया के 20 प्रमुख देशों के समूह जी-20 की बैठक जब शुरू हो रही हो, अमेरिका व यूरोप समेत तमाम विकसित देशों की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई हों, प्रमुख मुद्राओं में युद्ध की स्थिति आ गई हो, तमाम केंद्रीय बैंक व बड़े निवेशक सुरक्षा के लिए सोने की तरफ भाग रहे हों, ठीक उस वक्त विश्व बैंक भी सोने की अहमियत बताने लगे तो किसी का भी चौंकना स्वाभाविक है। लेकिन विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जॉयलिक ने यही किया है।
बुधवार को जॉयलिक ने सिंगापुर में वहां की सरकार और विश्व बैंक द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि वे मुद्राओं की विनिमय दरों के लिए स्वर्ण मानक की वापसी की वकालत नहीं कर रहे, लेकिन सोना इस समय कमरे में घुस आए विशालकाय हाथी की तरह है, यह बात नीति नियामकों को स्वीकार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया के बड़े देशों को इस समय विनिमय दरों से परे जाकर देखने और मूलभूत आर्थिक पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
सम्मेलन के बाद विश्व बैंक प्रमुख ने विदेशी संवाददाताओं के संघ के साथ बातचीत के दौरान कहा, “मैं नहीं समझता कि आप स्थिर विनिमय दर प्रणाली की तरफ लौट सकते हैं और यह प्रणाली है स्वर्ण मानक। हालांकि बाजार पहले ही सोने को वैकल्पिक आस्ति के रूप में इस्तेमाल करने लगा है क्योंकि मौजूदा आर्थिक हालात में लोगों का विश्वास डगमगा गया है। यह स्थिति दर्शाती है कि एक समस्या आ खड़ी हुई है जिसे सुलझाने की जरूरत है।” गौरतलब है कि हाल के हफ्तों में दुनिया में सोने की कीमतें रिक़ॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं और इस समय 1400 डॉलर प्रति औंस (31.1034768 ग्राम) के आसपास हैं।
जॉयलिक ने कहा कि कमरे में हाथी घुस आया है और मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को समझें। पर साथ ही कहा कि वे 19वीं सदी में लौटने की वकालत नहीं कर रहे, जब मुद्रा की आपूर्ति सोने से जुड़ी हुई थी। इसी हफ्ते कुछ दिन पहले उन्होंने यह कहकर दुनिया के वित्तीय बाजारों को चौंका दिया था कि दुनिया के सबसे बड़े देशों को विनिमय दरें तय करते वक्त सोने को संकेतक के रूप में लेना चाहिए। उनका यह बयान उस वक्त आया है जब हर तरफ यह चिंता छाई है कि सरकारें और केंद्रीय बैंक मुद्राओं का अवमूल्यन कर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आवेग दे सकते हैं। अमेरिका तक ने बाजार से सरकारी बांडों की खरीद कर ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की है। बता दें कि रॉबर्ट जॉयलिक अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रह चुके हैं।
नोट करने की बात यह है कि गुरुवार 11 नवंबर ने दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में जी-20 देशों के प्रमुखों की दो दिन की बैठक शुरू हो रही है। इसमें भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुधवार शाम ही सोल पहुंट चुके हैं। जी-20 समूह में शामिल देश हैं – अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की. यूरोपीय संघ और अमेरिका।
विश्व बैंक प्रमुख का कहना है कि किसी भी नई प्रणाली को डॉलर, यूरो, येन और पौंड के साथ चीनी युआन (रेनमिन्बी) को शामिल करने की जरूरत होगी। हो सकता है कि चीन अपनी मुद्रा रेनमिन्बी को अमेरिकी मांग के अनुरूप मजबूत होने दे। लेकिन इसके लिए मूलभूत आर्थिक पहलुओं पर सहमति की दरकार है। उन्होंने कहा कि अगर विश्व में स्वस्थ आर्थिक विकास होता है तो मुद्राओं का समायोजन आसान हो जाएगा। बता दें कि अमेरिका बार-बार चीन की आलोचना इस बात को लेकर करता रहा है कि वह निर्यात को बढ़ाने के लिए अपनी मुद्रा को सायास दबाकर रखता है।