दुनिया भर के तमाम विकसित और विकासशील देश असली जीडीपी निकालने के लिए डिफ्लेटर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन भारत इकलौता देश है जहां डिफ्लेटर का चोंगा पहनाकर भयंकर छल किया जा रहा है और सच छिपाया जा रहा है। अमेरिका समेत तमाम विकसित देश डिफ्लेटर के तौर पर प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (पीपीआई) का उपयोग करते हैं। यही स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मानक भी है। भारत डिफ्लेटर के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का उपयोग करता है। दिक्कत यह है कि जहां पीपीआई में देश में मैन्यूफैक्चरिंग लेकर सेवा व कृषि तक हर क्षेत्र के उत्पादन व मूल्यों को कवर किया जाता है, वहीं डब्ल्यूपीआई में पेट्रोलियम तेल व स्टील जैसे जिंसों को ज्यादा वजन दिया गया है और वो सेवाओं को मापता ही नहीं, जिनका हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान लगभग दो-तिहाई है। यही वजह है कि सितंबर 2022 के बाद जब देश में रिटेल मुद्रास्फीति ज्यादातर 5% से ऊपर चल रही है, तब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जिंसों के दाम घटने से थोक मुद्रास्फीति बराबर घट रही थी। अप्रैल-दिसंबर के दौरान तो इसकी औसत दर ऋणात्मक में 1.0% हो गई थी। ऐसे गलत डिफ्लेटर के चलते अपने यहां असली जीडीपी का आंकड़ा दस साल से अब तक भ्रामक आ रहा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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