बाहर का धन जाता, देशी धन भी सूखता

हम शेयर बाज़ार में रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों की ताकत की बात करते रह सकते हैं। लेकिन बढ़ती मुद्रास्फीति ने उन्हें निचोड़ना शुरू कर दिया। नौकरी और काम-धंधे से होनेवाली आय ठहरी पड़ी है। खर्च बढ़ते जा रहे हैं। वह भी तब, जब अभी तक बढ़ती ब्याज दर का असर ईएमआई पर नहीं पड़ा है. सवाल उठता है कि क्या घर-गृहस्थी चलाने के बढ़े खर्च के अनुरूप आम लोगों की आमदनी भी बढ़ने जा रही है? साफ उत्तर है – नहीं। न सरकार ऐसा करने जा रही है, न ही निजी कंपनियां और न ही काम-धंधे में ऐसी चमक आनेवाली है जिससे आमदनी बढ़ जाए। ऐसे में यह उम्मीद करना नादानी है कि एफआईआई की मुनाफावसूली को रिटेल निवेशक की खरीद बराबर कर देगी। बाहर का धन गया, देशी धन भी नहीं तो होगा क्या! अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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