खाद्य मंत्री के वी थॉमस अड़ गए हैं कि वे देश से गेहूं का निर्यात नहीं होने देंगे। ऐसा तब जबकि 19 जनवरी तक उनके बॉस रहे कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले ही हफ्ते कहा था कि देश में गेहूं का भारी स्टॉक है और हमें इसके निर्यात की इजाजत दे देनी चाहिए। वैसे, थॉमस ने मंगलवार को कहा कि गेहूं निर्यात के बारे में अगले हफ्ते मंत्रियों का समूह विचार करेगा। मंत्रियों के समूह की बैठक 2 मई को होनी है।
बता दें कि पहले शरद पवार के पास कृषि के साथ-साथ खाद्य मंत्रालय भी था और थॉमस उनके अधीन खाद्य राज्य मंत्री थे। लेकिन इसी साल 19 जनवरी को मंत्रिमंडल के फेरबदल में पवार को खाद्य मंत्रालय से हटाकर खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय दे दिया गया, जबकि थॉमस को खाद्य मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दे दिया।
थॉमस ने कल ही संवाददाताओं के साथ अनौपचारिक बातचीत में कहा कि वे गेहूं निर्यात के पूरी तरह खिलाफ हैं क्योंकि ऐसा होने से देश में गेहूं के दाम बढ़ सकते हैं जिससे खाद्य मुद्रास्फीति पर बुरा असर पड़ सकता है। उनका कहना था कि हो सकता है कि पवार साहब किसानों के हित में निर्यात की बात कर रहे हों। लेकिन इसमें आम उपभोक्ता का हित नहीं है।
वैसे भी किसानों को जो दाम मिलना है, वह मिल चुका है। वे निजी कंपनियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक दामों में गेहूं बेच रहे हैं। इसलिए गेहूं निर्यात से असल में किसानों को नहीं, बल्कि बड़े व्यापारियों को फायदा होगा। उल्लेखनीय है कि देश में इस बार 8.42 करोड़ टन गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। साल भर पहले यह उत्पादन 8.08 करोड़ टन का था। देश में गेहूं का सालाना खपत 7.60 करोड़ टन है।
भारत दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसलिए निर्यात के फैसले से जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के मूल्य घट सकते हैं, वहीं घरेलू बाजार में इसके महंगा हो जाने का अंदेशा है। इसी के मद्देनजर खाद्य मंत्रालय निर्यात के खिलाफ है। खाद्य मंत्री के वी थॉमस का कहना था कि कृषि मंत्री होने के नाते पवार साहब की प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं। लेकिन मेरी प्राथमिकता अलग है। मालूम हो कि देश से गेहूं के निर्यात पर साल 2007 की शुरुआत से ही बैन लगा हुआ है।