देश की अर्थव्यवस्था इस साल पिछले तीन सालों की सबसे ज्यादा 9 फीसदी विकास दर हासिल कर सकती है, लेकिन मुद्रास्फीति की दर साल के अंत में रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी ज्यादा रहेगी। यही नहीं, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति तो 19.95 फीसदी पर पहुंच सकती है। वित्त मंत्रालय ने यह अनुमान अर्थव्यवस्था के छमाही विश्लेषण में पेश किया है। मंगलवार को यह विश्लेषण रिपोर्ट वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद के दोनों सदनों में पेश की।
वित्त मंत्रालय का मानना है कि पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 9 फीसदी हो सकती है। जून तिमाही में यह दर 8.8 फीसदी और सितंबर तिमाही में 8.9 फीसदी दर्ज की गई है। अगर इस बार 9 फीसदी की सालाना विकास दर हासिल कर ली जाती है तो यह पिछले तीन सालों में देश की सबसे ज्यादा आर्थिक विकास दर होगी। बीते वित्त वर्ष 2009-10 में आर्थिक विकास दर 7.4 फीसदी रही थी।
लेकिन सरकार के लिए ज्यादा चिंता की बात मुद्रास्फीति पर नियंत्रण न पाना है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2010-11 की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा में मार्च 2011 में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति के 5.5 फीसदी होने का अनुमान व्यक्त किया था। लेकिन वित्त मंत्रालय की छमाही आर्थिक विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार यह दर 8.98 फीसदी हो सकती है। ज्यादा फिक्र की बात यह है कि खाद्य मुद्रास्फीति की दर वित्त वर्ष के अंत तक 19.95 फीसदी हो सकती है। इससे पहले फरवरी 2010 में खाद्य मुद्रास्फीति की दर 20.22 फीसदी पर पहुंच चुकी है। लेकिन इसके बाद गिरते-गिरते यह अक्टूबर 2010 में 9.97 फीसदी पर आ गई।
वित्त मंत्रालय की छमाही रिपोर्ट में महंगाई के बारे में कहा गया है कि पिछले साल के भयंकर सूखे के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज उछाल देखा गया था, जिसके चलते देश में महंगाई में तेजी आई। बाद में देश भर में सामान्य वर्षा के कारण स्थिति में सुधार आया और फसलों में इजाफा हुआ। अब खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति घटकर एक अंक में हो गई है और उसमें कमी का रुझान मौजूद है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरे विश्व में सबसे अधिक तेजी से बढ़ रही है। यह विकास तीन क्षेत्रों यानी कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में सुधार पर आधारित है। इसके अलावा निजी खपत और निवेश भी विकास दर में होने वाली बढ़ोतरी के कारण हैं। सरकार के भरोसा जताया है कि इस साल राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.5 फीसदी के लक्ष्य के भीतर रखा जा सकेगा।