अवाम के बाद सरकार पर कसा फंदा, 18.32% बढ़ी खाद्य मुद्रास्फीति

महंगाई का असर लोग जब झेल चुके होते हैं, तब सरकार को पता चलता है और यह अगर ज्यादा हुई तो उसकी परेशानी बढ़ जाती है क्योंकि इससे मुद्रा से जुड़े सारे तार हिल जाते हैं, बैंकों व कॉल मनी की ब्याज दरों से लेकर सरकार की उधारी तक प्रभावित होती है और रिजर्व बैंक को फटाफट उपाय करने पड़ते हैं। ऊपर से सरकार को विपक्ष का राजनीतिक हमला अलग से सहना पड़ता है। इस समय यही हो रहा है। 25 दिसंबर को खत्म हफ्ते में खाद्य मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 18.32 फीसदी पर पहुंच गई है। इससे पिछले हफ्ते में यह 14.44 फीसदी थी। तभी से लेकर सरकार के कान खड़े हो गए हैं।

वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार 25 दिसंबर 2010 को खत्म सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति की दर 18.32 फीसदी और ईंधन संबंधी मुद्रास्फीति 11.63 फीसदी दर्ज की गई है। इससे ठीक पिछले हफ्ते में खाद्य मुद्रास्फीति 14.44 फीसदी और ईंधन मुद्रास्फीति अभी के बराबर 11.63 फीसदी ही रही थी। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित सकल मुद्रास्फीति के दिसंबर माह के आंकड़े 14 जनवरी को आने हैं। नवंबर में इसकी दर 7.48 फीसदी थी। यह अक्टूबर की दर 8.58 फीसदी से कम थी। इसलिए सरकार ने तब थोड़ा सुकून जाहिर किया था। लेकिन उसके बाद से खाद्य मुद्रास्फीति ने उसका चैन छीन लिया है।

खाद्य मुद्रास्फीति के साप्ताहिक आंकड़े जारी किए जाने के बाद वित्त मंत्री ने प्रणव मुखर्जी ने कहा, ‘‘यह (खाद्य मुद्रास्फीति) और बढ़ गई है। यह चिंता की वजह है।’’ लेकिन साथ ही उनका कहना था कि यह साप्ताहित उतार चढाव है और हमें इसके साथ लम्बी अवधि के आंकड़ों का इंतजार करना चहिए। वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘ये साप्ताहिक आंकड़े हैं। हमें मासिक आंकड़ों का इंतजार करना चाहिए। ये साप्ताहिक उतार-चढ़ाव है, लेकिन चिंता का कारण है।’’

खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में तेजी की मुख्य वजह थोक बाजार में सब्जियों की कीमतों में 58.58 फीसदी की बढ़ोतरी है। 25 दिसंबर को खत्म हफ्ते में प्याज की कीमत साल दर साल के आधार पर 82.47 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि अंडा, मीट व मछली 20.83 फीसदी, फल 19.99 फीसदी और दूध 19.59 फीसदी महंगा हुआ है। उक्त सप्ताह में थोक बाजार में प्याज की कीमत पिछले हफ्ते की ही तुलना में 23.01 फीसदी बढ़ गई है। खुदरा बाजार में दाम इससे कहीं ज्यादा बढ़े हैं। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने इसके लिए व्यापारियों के कार्टेल को जिम्मेदार ठहराया है।

अब लगभग पक्का माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक 25 जनवरी की मौद्रिक समीक्षा में अल्पकालिक ब्याज दरें बढ़ा सकता है। इस बीच सरकार से जुड़े दिग्गज लोगों की चिंता बाहर आना शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने कहा है कि मुद्रास्फीति की दर को तभी संतोषजनक माना जा सकता है, जब वह 4 फीसदी तक आ जाए।

उनके मुताबिक रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज बढ़ाने का फैसला दिसंबर व जनवरी में मूल्यों की स्थिति पर निर्भर करेगा। उनका कहना था, “अभी मौद्रिक नीति की समीक्षा आने में तीन हफ्ते बाकी हैं। अगर मुद्रास्फीति की दरों में काफी कमी आती है तब कोई कदम उठाने की जरूरत नहीं होगा। लेकिन मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर बनी रहती है तब उचित कार्रवाई करनी पड़ेगी।”

कल गृह मंत्री और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी राजधानी दिल्ली में आयोजित एक समारोह में कह चुके हैं कि मूल्यों का स्थायित्व किसी भी देश, खासकर गरीब देश में बेहद महत्वपूर्ण होता है। उनका कहना था, “मुद्रास्फीति से बुरा टैक्स कोई नहीं होता।”

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