जर्मन मूल की ग्लोबल ई-पेमेंट कंपनी वायरकार्ड ने बैंकिंग और इसके नजदीकी धंधों में अपने हाथ-पैर पूरी दुनिया में फैला रखे थे। फिर भी उसका कद ऐसा नहीं है कि इसी 25 जून को उसके दिवाला बोल देने से दुनिया के वित्तीय ढांचे पर 2008 जैसा खतरा मंडराने लगे। अलबत्ता, जिस तरह इस मामले में एक बड़ी ग्लोबल एकाउंटेंसी फर्म अर्न्स्ट एंड यंग की सांठ-गांठ सामने आई है, उसे देखते हुए तमाम छोटे-बड़े निवेशकों में डर समा गया है कि कहीं यह किसी बहुत बड़ी समस्या का ऊपरी छोर भर न हो।
वायरकार्ड की एशिया-पैसिफिक शाखा में किसी वित्तीय घपले का अंदेशा ब्रिटेन के आर्थिक अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने पिछले साल अपनी एक खबर में जताया था। जवाब में वायरकार्ड ने इसे अपनी मानहानि की साजिश बताया और अखबार पर मुकदमे ठोक दिए। इससे भी दिलचस्प मामला अभी पंद्रह दिन पहले ‘सिटिजन लैब’ की एक रिपोर्ट में उभरा, जिसमें बताया गया था कि वायरकार्ड के खिलाफ आलोचनात्मक रुख अपनाने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ यह कंपनी भाड़े पर खुराफात करने वाले हैकर्स के समायोजन ‘हैकर्स फॉर हायर’ की सेवाएं लेती है।
इसमें एक भारतीय हैकर ग्रुप बेलट्रॉक्स इन्फोटेक का नाम भी सामने आया है, जिस पर फिशिंग के जरिए वायरकार्ड के खिलाफ खबर चलाने वालों के बैंक खातों से पैसे निकालने और उनकी साइट्स में गड़बड़ी करने के आरोप हैं। बहरहाल, इसी 18 जून को वायरकार्ड ने मान लिया कि उसकी दर्ज कमाई में 2 अरब डॉलर से ज्यादा नकदी का पता नहीं चल पा रहा है। 20 जून को कंपनी के सीईओ ने इस्तीफा दिया, 22 जून को उसकी गिरफ्तारी हुई और 25 जून को कंपनी ने दिवालिया होने की अर्जी लगा दी।
आँख खोलने वाला लेख.