सब हल्ला मचा रहे हैं कि देश में ऋण-जमा या लोन-डिपॉजिट अनुपात (एलडीआर) घट गया है। लेकिन कोई नहीं बता रहा कि इसकी सबसे प्रमुख वजह यह है कि रिजर्व बैंक ने काफी कम मुद्रा निर्माण किया है। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में उसके केवल 0.6 लाख करोड़ रुपए की नयी मुद्रा बनाई है, जबकि ठीक पिछले तीन वित्त वर्षों में 2019-20 से 2022-23 तक 20 लाख करोड़ रुपए की नयी मुद्रा सृजित की थी। रिजर्व बैंक का शुद्ध मुद्रा सृजन 2023-24 में न के बराबर रहा, जबकि 2022-23 में यह 1% घटा और 2021-22 में 1% बढ़ा था। उसका 20 साल का मुद्रा निर्माण का औसत 3% बढ़ाने का रहा है। कम मुद्रा सृजन से सिस्टम में मनी सप्लाई घट गई जिससे डिपॉजिट की तुलना में बैंकों की ऋण देने की क्षमता घटी और एलडीआर में कमी आ गई। एलडीआर के घटने की दूसरी खास वजह है पिछले दो सालों में बैंकों के मुनाफे में अच्छी-खासी वृद्धि। बीते वित्त वर्ष 2023-24 में बैंकों का कुल मुनाफा पिछले साल के डिपॉजिट का 1.8% रहा है, जबकि वित्त वर्ष 2015-16 से 2019-20 तक के चार सालों में यह औसतन 0.1% रहा करता था। इसलिए यह बात दिन के उजाले की तरह साफ हो गई है कि शेयर बाज़ार में धन का प्रवाह बढ़ने का सीधा असर बैंक डिपॉजिट पर नहीं पड़ा है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर वित्त मंत्री से लेकर रिजर्व बैंक गवर्नर तक झूठ क्यों बोल रहे हैं? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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