भावनाओं की दुनिया कितनी निश्छल होती है! लेकिन दुनियावाले इन्हीं भावनाओं की तह में पैठकर हमें छलने का तर्क निकाल लेते हैं। और, ज़िंदगी का कारोबार तो तर्क से चलता है बंधुवर, भावनाओं से नहीं।
2010-06-20
भावनाओं की दुनिया कितनी निश्छल होती है! लेकिन दुनियावाले इन्हीं भावनाओं की तह में पैठकर हमें छलने का तर्क निकाल लेते हैं। और, ज़िंदगी का कारोबार तो तर्क से चलता है बंधुवर, भावनाओं से नहीं।
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