विधानसभा चुनावों के खत्म होते ही महंगा होगा डीजल, बैठक 11 को

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद सरकार घरलू बाजार में डीजल के दाम अब और ज्यादा समय तक थामे रखने को तैयार नहीं दिख रही और इसमें फिलहाल तीन रुपए प्रति लीटर की बढोतरी की योजना बना रही है। नए दाम की घोषणा पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की मौजूदा प्रक्रिया पूरी होने के साथ की जा सकती है।

केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिल्ली में संवाददाताओं से  अनौपचारिक बातचीत में यह जानकारी दी और बताया, “डीजल की दरों की समीक्षा के लिए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की बैठक 11 मई को होने वाली है।” अधिकारी ने अपना नाम जाहिर नहीं करने को कहा।

विधानसभा चुनाओं में आखिरी चरण का मतदान 10 मई को सम्पन्न होगा। उक्त अधिकारी ने बताया कि पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारियों ने कल, मंगलवार को निर्वाचन आयोग से मुलाकत कर चुनाव के नतीजे आने से पहले पेट्रोलियम मूल्यों में संशोधन किए जाने की संभावनाओं के बारे में चर्चा की। नतीजे 13 मई को आनेवाले हैं।

बता दें कि पेट्रोल की कीमत पिछले साल जून से नियंत्रण-मुक्त कर दी गई है। अब कंपनियां इसे अंतरराष्ट्रीय मूल्य के हिसाब से बदलती रहती हैं। माना जा रहा है कि वे इसी शनिवार को पेट्रोल के मूल्य में प्रति लीटर तीन से चार रुपए का इजाफा कर सकती हैं। अन्य तीन प्रमुख पेट्रोलियम पदार्थों – डीजल, रसोई गैस और केरोसिन या मिट्टी तेल के मूल्य अब भी सरकार ही तय करती है और लागत से कम मूल्य पर बेचने के कारण तेल मार्केटिंग कंपनियों (इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम व हिंदुस्तान पेट्रोलियम) को सब्सिडी देती है।

पिछले हफ्ते पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के 120 डॉलर प्रति बैरल होने जाने से तेल मार्केटिंग कंपनियों को मौजूदा बिक्री मूल्य पर डीजल में प्रति लीटर 16.10 रुपए, कैरोसिन में 26.98 रुपए प्रति लीटर और रसोई गैस पर प्रति सिलिंडर 315.86 रुपए की अंडर-रिकवरी या नुकसान हो रहा है। वैसे, कंपनियों को वास्तविक नुकसान नहीं होता क्योंकि उनको यह रकम सरकार से बतौर सब्सिडी मिल जाती है।

इस स्थिति से निजात पाने के लिए सरकार कम से कम डीजल को भी नियंत्रण-मुक्त कर देना चाहती है। लेकिन उद्योग व व्यापार की संगठित लॉबी के दबाव में वह ऐसा नहीं कर पा रही है। खुद रेल मंत्रालय इसका विरोध कर रहा है क्योंकि भारतीय रेल डीजल की बहुत बड़ी उपभोक्ता है। फिलहाल रसोई गैस व मिट्टी तेल से सरकारी मूल्य नियंत्रण हटाए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि यह राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मसला है।

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