वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने 22 जून को देश के बाहर अमेरिका में बयान दिया था कि रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को क्रमबद्ध रूप से बढ़ाया जाएगा और इसके ठीक दो हफ्ते बाद ही वाणिज्य मंत्रालय के औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र को एफडीआई के लिए खोलने पर 21 पन्नों का बहस-पत्र पेश कर दिया। इस पर 31 जुलाई तक सभी संबंधित पक्षों की प्रतिक्रिया मांगी गई है। बहस पत्र में खुलकर कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन तमाम अध्ययन रिपोर्टों के आधार पर यह स्थापित करने की कोशिश की गई है कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई के आने से किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों का फायदा है और देश का असंगठित रिटेल क्षेत्र इतना कमजोर नहीं है कि वह विदेशी निवेश के आने से खत्म हो जाएगा।
बहस-पत्र में पूछा गया है कि क्या अनाज व दूसरी आवश्यक वस्तुओं समेत मल्टी ब्रांड रिटेल में आमतौर पर एफडीआई को बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के काम में लाया जाना चाहिए? क्या इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स में एफडीआई निवेश की सीमा, जैसे 50 फीसदी बांध देनी चाहिए? क्या यह शर्त लगा देनी चाहिए कि रिटेल आउटलेट में कम से कम 50 फीसदी ग्रामीण युवकों को रोजगार देना जरूरी हो? बहस-पत्र का पूरा स्वर यही है कि अभी रिटेल व्यापार के लिए जिस तरह के व्यापक तंत्र की जरूरत है, उसमें एफडीआई का आना काफी सहयोगी भूमिका निभाएगा। इसमें ब्राजील, चीन व इंडोनेशिया जैसे देशों का उदाहरण दिया गया है जहां संगठित रिटेल में विदेशी निवेश की इजाजत मिली हुई है।
बता दें कि साल 2006 से देश में सिंगल ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई और थोक व्यापार से जुड़े कैश एंड कैरी व्यवसाय में 100 फीसदी विदेशी निवेश की छूट मिली हुई है। लेकिन मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की पूरी मनाही है और यह राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील मसला बना हुआ है। विपक्ष का कहना है कि असंगठित रिटेल व्यापार (किराना स्टोर) भले ही परिवार आधारित हो, लेकिन यह देश में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने का माध्यम बना हुआ है। बहस पत्र में भी इसे स्वीकार किया गया है और बताया गया है कि एनएसएसओ (नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन) के 64वें चक्र के अनुसार 2007-08 में रिटेल व्यापार में देश के 7.2 फीसदी कामगारों और कुल 3.31 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था।
बहस पत्र में किसानों को ध्यान में रखकर साबित करने की कोशिश की गई है कि कैसे संगठित रिटेल बिचौलियों को खत्म कर देगा और इससे जहां किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम मिलेगा, वहीं उपभोक्ताओं को सस्ता सामान भी मिल सकता है। हालांकि एफडीआई रोकने के पक्ष में यह तर्क भी दिया गया है कि देश के संगठित रिटेल क्षेत्र का कुल रिटेल व्यापार में हिस्सा अभी केवल 4.1 फीसदी है और वह अपने को जमाने की कोशिश में लगा है। ऐसे में इस क्षेत्र में विदेशी निवेश का आना उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। गौरतलब है कि संगठित रिटेल में फ्यूचर समूह (बिग बाजार) से लेकर भारती, रिलायंस, आदित्य बिड़ला और गोयनका जैसे बड़े औद्योगिक समूह उतर चुके हैं और वे खुद मल्टी ब्रांड रिटेल को एफडीआई के लिए खोलने की वकालत कर रहे हैं।
सरकार के बहस पत्र पर आदित्य बिड़ला रिटेल के सीईओ थॉमस वर्गीस का कहना है कि बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश और स्थानीय लोगों को रोजगार देने की शर्त सही है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कदम से सरकार ने दिखा दिया है कि वह मल्टी ब्रांड रिटेल को एफडीआई के लिए खोलने को मानसिक रूप से तैयार है। यह अपने आप में काफी सकारात्मक बात है। उन्होंने कहा कि देश का कुल रिटेल बाजार अभी 41,000 करोड़ डॉलर का है, जिसमें संगठित रिटेल का हिस्सा एकदम मामूली है। इसलिए विदेशी निवेशकों के आने से मौजूदा खिलाड़ियों को कोई खतरा नहीं है। यहां सबके विकास की पूरी गुंजाइश है।