क्यों-कैसे चढ़े काठ की हांडी तीसरी बार!

पहली बार अच्छे दिन और विदेश से कालाधन वापस लाने का जुमला था। मतदाता ने भरोसा किया। दूसरी बार पुलवामा के शहीदों के नाम पर अवाम की देशभक्ति को ललकारा गया। तब भी मतदाता ने तहेदिल से साथ दिया। लेकिन न अच्छे दिन आए, न विदेश से कालाधन और न ही देश की बाहरी-भीतरी सुरक्षा मजबूत हुई। हां, इतना ज़रूर हुआ कि विरोधियों पर ईडी व सीबीआई के हमले तेज कर दिए गए। विपक्ष के जो नेता भाजपा के खेमे में आ गए, उनकी खैर, बाकी से वैर। इस बीच मुख्यधारा का मीडिया सरकार की गोद में जा बैठा। इस तरह दस साल खत्म हुए और अगले पांच साल सत्ता हड़पने के लिए तीसरी बार का पासा फेंक दिया गया है। जुमलों की हवा उड़ गई तो उन्हें अब मोदी की ‘गारंटी’ का नाम दे दिया गया। तीसरे कार्यकाल में दुनिया में तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था के साथ ही 23 साल बाद 2047 में विकसित भारत का ‘संकल्प’ उछाल दिया गया है। मगर, दो-दो बार धोखा खा चुका मतदाता तीसरी बार झांसे में क्यों व कैसे फंसने जा रहा है? जो काठ की हांडी दूसरी बार नहीं चढ़ती, वो तीसरी बार कैसे चढ़ने जा रही है? जवाब साफ है कि 32% मतदाता तो राम के नाम पर मुस्लिम नफरत और हिंदू अस्मिता में मदहोश हैं। बाकी 2-3% भी फंस गए तो ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ सिस्टम के चलते 65% पर 35% को बहुमत मिल जाएगा। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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