अमेरिका में बांड की कम खरीद से ब्याज दरें और ज्यादा बढ़ने लगेंगी। वहां के दस साल के सरकारी बांडों पर यील्ड की दर इस साल पहले ही 0.9% से बढ़कर 1.69% हो चुकी है। जब एफपीआई हमारे बांडों व स्टॉक्स से निकलने लगेंगे तो हमारा विदेशी मुद्रा भंडार हल्का होने लगेगा। तब पता चलेगा कि हम जिस भंडार पर इतरा रहे हैं, वह दरअसल रेत के रेगिस्तानी टीले जैसा है। वैसे भी इधर केंद्र सरकार के कहने पर रिजर्व बैंक ने एफडीआई और एफपीआई का चरित्र बड़ा धुंधला कर दिया है। अगर किसी कंपनी में विदेशी निवेश उसकी इक्विटी के 10% रहता है तो वो एफपीआई है और 10% से ज्यादा होने पर एफडीआई। अब बुधवार की बुद्धि…
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