जब विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर 2.5% से 2.6% पर अटकी पड़ी हो, सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका के इस साल 2025 में बहुत हुआ तौ 1.6% बढ़ने का अनुमान वहां का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व जता रहा हो, दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की विकास दर घटकर 4.5% पर आ गई हो, तब भारत की अर्थव्यवस्था का इस साल जून तिमाही में 7.8% और सितंबर तिमाही में 8.2% बढ़ जाना किसी को भी हतप्रभ कर सकता है।औरऔर भी

कभी-कभी इतिहास किसी तारीख या घटना से नहीं, बल्कि किसी सवाल से शुरू होता है। कैसे ऐसा हुआ कि समझदार लोग, शिक्षित समाज और सत्ता के गलियारों में बैठी बुद्धि एक साथ भ्रम में डूब गई? ‘साउथ सी बबल’ इसी सवाल की जन्मभूमि है। यह केवल शेयरों के चढ़ने और गिरने की कहानी नहीं है, बल्कि उस क्षण की कथा है जब तर्क ने भीड़ के सामने हथियार डाल दिए, जब भविष्य की चमक ने वर्तमान कीऔरऔर भी

देश के राष्ट्रीय आर्थिक आंकड़ों पर आईएमएफ के एतराज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की प्रतिक्रिया को बेहयाई नहीं, केवल थेथरई कहा जा सकता है। मोदी तो अभी भी देश को राष्ट्रगीत वंदे मातरम तक के नामं पर 2047 विकसित बनाने का झांसा दिए जा रहे हैं। वहीं, निर्मला सीतारमण राष्ट्रीय खातों की विसंगतियों को महज आधार वर्ष को बदलने के तकनीकी पेंच में उलझा देना चाहती हैं। महोदया, असल सवाल यह हैऔरऔर भी

जो बात दबी जुबान से कई सालों से कही जा रही थी, ‘अर्थकाम’ जिसको लेकर हल्ला मचाता रहा है, जिसे वो अर्थव्यवस्था के साथ वोट-चोरी जैसा अपराध बताता रहा है, जिसे देशभक्त व जागरूक अर्थशास्त्री बराबर उठाते रहे हैं और जिसे हाल में बिजनेस चैनल व पोर्टल भी उठाने लगे थे, वो अब जगजाहिर हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने अपनी ताजा सालाना समीक्षा में कहा है कि भारत के जीडीपी, जीवीए और मुद्रास्फीति जैसे राष्ट्रीयऔरऔर भी

देश के 80% परिवार इतना भी कमा नहीं पाते कि कहीं निवेश कर सकें। बाकी 20% में भी बहुतेरे ऐसे हैं जो जमकर कमाने के बाद भी कुछ बचा नहीं पाते। इनके लिए धन हाथ की मैल नहीं, बल्कि पानी की तरह है जो कोई न कोई जरिया खोजकर बहता रहता है। धन लोगों की आदतों, बर्ताव, भावनाओं, चाहतों, विश्वास, लालच, सुरक्षा व स्वभाव के अनुरूप कहीं टिकता तो कहीं फिसलता रहता है। दुनिया में मूल्यवान निवेशऔरऔर भी