जीडीपी के डेटा और उसे निकालने की पद्धति की छीछालेदर जब आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ही नहीं, देश में सक्रिय तमाम ब्रोकरेज फर्म और निवेश बैंक तक करने लगे, तब केंद्र सरकार में डेटा के शीर्ष पर बैठे मुख्य आर्थिक सलाहकार के कानों पर थोड़ी जूं रेंगने लगी। तय हुआ है कि नए साल 2026 में 12 फरवरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और 27 फरवरी की जीडीपी की नई सीरीज जारी होगी। दोनोंऔरऔर भी

सरकार को तनिक भी शर्म नहीं कि वो देश का डेमोग्राफिक डिविडेंड कहे जानेवाली युवा शक्ति को संभाल नहीं पा रही, उन्हें ढंग का रोज़गार नहीं दे पा रही। नहीं तो इतनी आसानी व मक्कारी से 12 करोड़ गरीब परिवारों से रोज़गार का हक छीनकर उन्हें निरीह याचक नहीं बना देती। उसे फर्क नहीं पड़ता कि देश में 15 से 29 साल के युवाओं में बेरोज़गारी की दर साल-दर-साल लगातार दहाई अंकों में बनी हुई है। यहऔरऔर भी

मनरेगा को खत्म कर लाए गए जी राम जी कानून से जिन 12 करोड़ गरीब परिवारों या प्रति परिवार औसत पांच सदस्य मानें तो 60 करोड़ गरीबों से रोज़गार का हक छीना जा रहा है, यकीनन वे देश के उन 81.35 करोड़ लोगों में शामिल होंगे, जिन्हें सरकार की तरफ से मुफ्त में हर महीने पांच किलो राशन दिया जाता है। अभी तक मनरेगा का लाभ लेनेवाले 60 करोड़ गरीबों का स्वाभिमान बचा हुआ था कि वेऔरऔर भी

अभी राष्ट्रीय खातों की विसंगतियों और जीडीपी के आंकड़ों पर छाया संदेह का कोहरा छंटा भी नहीं था कि भारत सरकार ने मनरेगा को वापस लेकर जी राम जी का ऐसा बिल संसद से पास करा लिया जिसने एक झटके में देश के 12 करोड़ गरीब परिवारों से साल में 100 दिन सरकार से रोज़गार पाने का अधिकार छीन लिया। मुंह में राम, बगल में छूरी की कहावत को सच करते हुए कहने को नए विधेयक मेंऔरऔर भी