रॉबर्ट लाइटहाइज़र डोनाल्ड ट्रम्प की पिछली सरकार में 2017 से 2021 तक अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रहे हैं। उन्होंने 2023 में प्रकाशित अपनी किताब ‘नो ट्रेड इज़ फ्री’ में लिखा है, “जब भी मैं भारतीय अधिकारियों से वार्ता करता था तो देश के करीब 15 खरबपतियों में हर किसी की जीवनी अपनी डेस्क पर रखता था। भारत सरकार की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए मैं इन्हीं लोगों के हितों पर गौर करता था।” लाइटहाइज़र इस समयऔरऔर भी

रहिमन विपदा हू भली जो थोड़े दिन होय, हित अनहित या जगत में जान परत सब कोय। साढ़े तीन महीने पहले 2 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जवाबी टैरिफ का जो हमला बोला, उसके बाद से साफ हो गया कि मोदी सरकार बाहर राष्ट्रीय हितों की कैसी हिफाजत करती है और भीतर किनके हितों के लिए कांम कर रही है। चीन जैसा अमेरिका का पक्का प्रतिस्पर्धी झुकने के लिए बजाय लड़ता रहा तो वो अपनेऔरऔर भी

दुनिया भर के आर्थिक व वित्तीय जगत में अनिश्चितता छाई है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने तीन साल से उथल-पुथल मचा रखी है। मध्य-पूर्व अब भी शांत नहीं हुआ है। ऊपर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ का नया बखेड़ा खड़ा कर रखा है। उम्मीद थी कि अलास्का में ट्रम्प-पुतिन मुलाकात से कुछ ठोस नतीजा निकलेगा। लेकिन अब यूरोपीय संघ तक अलग भाग रहा है। इन सबका असर भारत पर भी पड़ रहा है। सबसे तेज़ गति औरऔरऔर भी

मोहभंग तो आजादी मिलने के साल भर बाद ही शुरू हो गया था, जब 1948 में अली सरदार जाफरी ने लिखा था कि कौन आज़ाद हुआ, किसके माथे से स्याही छूटी, मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का, मादरे हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही। लेकिन वो मोहभंग आज़ादी के 78 साल बाद करोड़ों भारतवासियों के दिलों का नासूर बन गया है। सोचिए, इस माटी में जन्मे और आबोहवा में पले-पढ़े 17,10,890 लोग 2014 सेऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रम्प के टैरिफ पर कहते हैं, “हमारे लिए अपने किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा। मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।” बहुत बड़ी व्यक्तिगत कीमत यह हो सकती है कि देश के अवाम के साथ 11 सालों से छल किए जाने के कारण उन्हें सत्ताऔरऔर भी