चींटी तक बराबर बरसात के लिए बचाकर रखती है तो इंसानों की क्या बात! बचाना हमारी फितरत है। लेकिन हम किसी निर्जन जंगल में नहीं, बल्कि देश में रह रहे हैं, जिसमें हर सामाजिक लेन-देन के लिए मुद्रा है। मुद्रा है तो मुद्रास्फीति भी है जिस पर हमारा कोई वश नहीं। इसलिए चाहे-अनचाहे अपनी बचत को मुद्रास्फीति से बचाना हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। ज्यादा झंझट नहीं पालना तो बैंक एफडी और सरकारी या रिजर्व बैंक केऔरऔर भी