शेयरों के भाव का कोई ऊपरी पैमाना नहीं। मुमकिन है कि कोई शेयर 25,000 रुपए का होने के बावजूद सस्ता हो और कोई 25 पर भी महंगा हो। मानते हैं कि कोई शेयर 52 हफ्तों के न्यूनतम स्तर आ जाने पर सस्ता हो जाता है। यह एकदम गलत सोच है। संभव है कि इतना गिरने के बावजूद वो शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से काफी महंगा हो। आज तथास्तु में एक कंपनी जिसे करीब 25% और गिरना पड़ेगा…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में संजीदा निवेशकों की कई अलग श्रेणियां हैं। वे बाज़ार में अलग वक्त पर घुसते और निकलते हैं। सबसे पहले कंपनी का दमखम जानने के बाद स्मार्ट व प्रोफेशनल निवेशक एंट्री लेते हैं। उसके बाद सिस्टम ट्रेडर व संस्थाएं। फिर आते हैं प्रोफेशनल ट्रेडर और तब घुसते हैं म्यूचुअल फंड। इनका बटोरना खत्म हो जाने के बाद टीवी व अखबारों में शोर मचता है। तब जाकर रिटेल निवेशक जगते हैं। अब करें शुक्र का अभ्यास…औरऔर भी

आदर्श बाज़ार जैसा कुछ नहीं। वो महज एक परिकल्पना है। निहित स्वार्थ बाज़ार को अपने हिसाब से नचाते हैं। इसलिए देश ही नहीं, विदेश तक में बराबर घोटाले सामने आते रहते हैं। लेकिन पकड़े जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई भी होती है। अपने यहां भी शेयर बाज़ार में सही शक्तियों के साथ ही ऑपरेटर भी खूब खेल करते हैं। बहुत सारे स्टॉक्स ऑपरेटरों द्वारा चलाए जाते हैं। हमें ऐसे स्टॉक्स से बचना चाहिए। अब गुरु की दशा-दिशा…औरऔर भी

हमारे-आप जैसे अधिकांश लोगों के मन में यह धारणा भरी हुई है कि शेयर बाज़ार ऐसा बाज़ार है जहां आप मुनाफा खरीद सकते हैं। थोड़ी-सी पूंजी लेकर जाइए और चंद दिनों या महीनों में उसे कई गुना कर लीजिए। मगर, यह धारणा जब ज़मीनी हकीकत से टकराती है तब कपड़े क्या, लंगोटी तक उतर जाती है। याद रखें, इस जहान में कोई ऐसा बाज़ार नहीं, जहां मुनाफा खरीदा जा सकता हो। अब लगाते हैं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी