शुक्रवार को विदेशी निवेश बैंक मैक्वारी ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में आगाह किया था कि भारत को कच्चे तेल का झटका लग सकता है क्योंकि रुपए में इसकी कीमत अब तक की चोटी पर पहुंच चुकी हैं। तेल की ऊंची कीमतें मुद्रास्फीति को धक्का दे सकती हैं और ब्याज दरों को घटाए जाने की संभावना खत्म हो सकती है। मैक्वारी के बाद अब देश की दो प्रमुख रेटिंग एजेंसियों क्रिसिल और केयर रेटिंग्स ने कच्चे तेल के बढ़ते दामों से लगनेवाले झटके के प्रति सरकार को आगाह किया है।
क्रिसिल रिसर्च ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा है कि ईरान में चल रहे भू-राजनीतिक तनाव के चलते कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था के बावजूद कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें चालू साल 2012 में ज्यादातर 110-120 डॉलर पर ऊंची बनी रहेंगी, जबकि सरकारी आकलन 100 डॉलर प्रति बैरल का रहा है। इसलिए सरकार को नियंत्रित पेट्रोलियम उत्पादों – डीजल, कैरोसिन व रसोई गैस के मूल्य नए वित्त वर्ष 2012-13 में कम से कम 10-15 फीसदी बढ़ानी होंगी।
वहीं, केयर रेटिंग्स का कहना है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भारत में न केवल मुद्रास्फीति और व्यापार घाटे में इजाफा होगा, बल्कि सब्सिडी का बोझ भी बढ़ जाएगा और मौद्रिक नीति में ढील देने से पहले इस पहलू पर गौर करना जरूरी हो जाएगा। बता दें कि देश में कच्चे तेल की मांग का करीब 80 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में कच्चे तेल की हमारी प्रति दिन की खपत 36 लाख टन रही थी।
केयर की रिपोर्ट में बताया गया है कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से व्यापार घाटा बढ़ता है, जिससे रुपए की विनिमय दर प्रभावित होती है और फिर रुपए में हमारी आयात लागत बढ़ जाती है। इससे तेल कंपनियों पर बढ़े दबाव को कम करने के लिए सरकार अगर सब्सिडी बढ़ाती है तो राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा और अगर पेट्रोलियम उत्पादों के रिटेल मूल्य बढ़ाती है तो मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी।
मालूम हो कि यूरोपीय संघ ने अमेरिका का साथ देते हुए ईरान को परमाणु अस्त्र हासिल करने से रोकने के लिए उससे तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके जवाब में ईरान ने होर्मुज़ की समुद्री पट्टी को बंद करने की धमकी दी है। यूं तो ईरान दुनिया का 4 फीसदी ही कच्चा तेल उत्पादन करता है। लेकिन इस पट्टी से ईरान समेत सउदी अरब व कुवैत तक का कच्चा तेल दुनिया के दूसरे देशों तक पहुंचता है जो पूरी वैश्विक सप्लाई का 35 से 40 फीसदी हिस्सा है।
क्रिसिल रिसर्च के प्रमुख श्रीधर चंद्रशेखर का कहना है, “समुद्री पट्टी से तेल की सप्लाई रुकने से तेल की कीमतों में आग लग सकती है। अतीत में मध्य-पूर्व में हुए ऐसे टकराव, जैसे 1990-91 में इराक-कुवैत युद्ध और 2003 के कुवैत युद्ध के दौरान सप्लाई में एक फीसदी कमी से तेल की कीमतें 9 से 15 फीसदी बढ़ जाती रही हैं।”
क्रिसिल के मुताबिक कच्चे तेल के दाम बढ़ने से केंद्र सरकार को जून 2011 की तरह फिर पेट्रोलियम उत्पादों के रिटेल मूल्य 10 से 15 फीसदी बढ़ाने होंगे। इसके बावजूद सरकारी तेल कंपनियों – इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम व हिंदुस्तान पेट्रोलियम की अंडर-रिकवरी 2012-13 में एक लाख करोड़ रुपए पर पहुंच जाने की उम्मीद है। इसका कम से कम 50 फीसदी हिस्सा सरकार को वहन करना होगा, जिससे उसके खजाने की हालत और बिगड़ जाएगी।
इस बीच वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को ‘परेशान करने वाला’ बताया है। लेकिन उनका कहना था कि घरेलू अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। मुखर्जी ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘कच्चे तेल की कीमतों में तेजी परेशान करने वाली है, पर अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि इससे किस क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा।’’
उल्लेखनीय है कि ईरान से सप्लाई रुकने की आशंका के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें फिर तेजी से बढ़ रही हैं। कच्चा तेल फिर 125 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर निकल गया है। पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने कहा है कि भारत पर ईरान से कच्चा तेल खरीदने को लेकर किसी तरह का बाहरी दबाव नहीं है और इस मामले में सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को लागू किया जाएगा। अमेरिका और यूरोपीय देशों के ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को खारिज करते हुए रेड्डी ने कहा, ‘‘हम सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का सम्मान करते हैं। किसी और प्रतिबंध को हम नहीं मानेंगे।”