अभी आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन समारोह को बीते दो दिन ही हुए हैं कि कांग्रेस आलाकमान और नेहरू परिवार की मुखिया सोनिया गांधी के खासमखास केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए नेहरू द्वारा अपनाई गई नीतियों को जिम्मेदार ठहरा दिया।
श्री मुखर्जी ने बुधवार को भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी या कैग) के 150वें वर्ष के समारोह की समाप्ति पर अपने संबोधन में कहा, “हम भ्रष्टाचार के वायरस को व्यवस्था से निकाल फेंकने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। भ्रष्टाचार अनेक सिरों वाला दानव है। इसके बहुतेरे कारण हमारे प्रशासन की औपनिवेशिक विरासत और आर्थिक गतिविधियों पर अतिशय सरकारी नियंत्रण में निहित थे। यह सरकारी नियंत्रण भारत द्वारा विकास के लिए अपनाए गए केंद्रीकृत योजना के मॉडल का अभिन्न हिस्सा था। लेकिन 1980 के दशक के आखिरी सालों से अर्थव्यवस्था को निरतंर उदार बनाते हुए हमने भ्रष्टाचार की गुंजाइश बहुत कम कर दी है।”
क्या कमाल की बात है कि जिस नेहरू पर ताजिंदगी भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा, उनकी नीतियों को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का श्रेय उनके उस नाती राजीव गांधी को दिया जा रहा है जिसे खुद बोफोर्स तोपों के सौदों में भ्रष्टाचार के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। खैर, राजनीतिक अवसरवाद और चाटुकारिता की कोई सीमा नहीं होती, इसे हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी बखूबी जानते हैं। बोलने में उनका कोई सानी नहीं है। कैग के समारोह में उनका कहना था, “आधुनिक लोकतंत्र की बुनियाद वित्तीय जवाबदेही में निहित है। एक निडर, योग्य और स्वतंत्र लेखा परीक्षक वित्तीय जवाबदेही का मूलभूत आधार होता है।”
श्री मुखर्जी ने कहा कि कैग की भूमिका जनता, कार्यपालिका व विधायिका जैसे विभिन्न पक्षों को यह विश्वास दिलाना है कि करदाताओं के धन का सही तरीके से उपयोग संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 16 नवम्बर 2010 को इस समारोह की शुरुआत के दौरान अपने संबोधन में उन्होंने अच्छे प्रशासन के विकास में वित्त मंत्रालय और कैग के बीच करीबी साझेदारी को स्वीकार किया था। मंत्रालय और कैग दोनों ही सार्वजनिक खर्च में पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ-साथ सरकार के अंतर्गत पर्याप्त और प्रभावी आंतरिक नियत्रण व जोखिम प्रबंधन की जरूरत के प्रति सजग हैं।
श्री मुखर्जी ने कहा कि सरकार बेहतर आंतरिक लेखा परीक्षण कार्य प्रणालियों को सुनिश्चित करने के प्रति वचनबद्ध है और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (डीपीसी) अधिनियम, 1971 के संशोधनों के लिए दिये गये प्रस्तावों पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इन संशोधनों से नवीन तंत्र से युक्त प्रशासन के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को कार्यप्रणाली से निपटने के लिए और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक संस्थान के 150 वर्ष पूर्ण होने के ऐतिहासिक मौके पर भारत सरकार ने स्मारक सिक्कों को भी जारी करने का फैसला किया है। सरकार की तरफ 150 और 5 रूपए के स्मारक सिक्के जारी किए गए हैं।