बाबा रामदेव के दबाव में सरकार द्वारा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने पर विचार के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की पहली बैठक इसी हफ्ते होने की उम्मीद है। लेकिन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि काले धन के खिलाफ कार्रवाई में समितियों और अध्ययन के बहाने देरी से भ्रष्ट नेताओं, व्यापारियों व नौकरशाहों को अपना अवैध धन दिखावटी कंपनियों में लगाने का मौका मिल जाएगा।
जेएनयू में सेंटर फॉर इकनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग के प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, “और अध्ययन या समितियां या नई विशेष जांच शाखा का गठन और विदेशी सरकारों के साथ संधियां केवल कार्रवाई को रोकने के लिए हैं।” कुमार ने ‘द ब्लैक मनी इन इंडिया’ नामं की किताब भी लिखी है।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा काले धन पर अध्ययन शुरू करने या समितियां बनाने से भ्रष्ट राजनेताओं, उद्योगपतियों व नौकरशाहों को अपना पैसा विदेश में बनी दिखावटी कंपनियों में लगाने का मौका मिल जाएगा। उनके मुताबिक सरकार संदिग्ध लोगों की टेलिफोन बातचीत की रिकॉर्डिंग और जांच एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर कार्रवाई कर सकती है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफसी) में प्रोफेसर इला पटनायक का भी कमोबेश यही मानना है। उन्होंने कहा कि कर से जुड़े अपराधों पर नियंत्रण के लिए आपराधिक जांच निदेशालय (डीसीआई) जैसी एजेंसी की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि कर से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए हमें डीसीआई जैसी किसी नई विशेष जांच एजेंसी की जरूरत है।” उल्लेखनीय है कि काले धन पर नियंत्रण के लिए बढ़ते दबाव के बीच सरकार ने हाल ही में डीसीआई का गठन किया था।