केंद्र को 13% एक्साइज केवल तंबाकू उत्पादों से, किसानों को विकल्प नहीं

भारत ने साल 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तंबाकू नियंत्रण फ्रेमवर्क कनवेंशन पर दस्तखत किए थे। इसकी धारा 17 व 18 के तहत केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह देश के किसानों को तंबाकू की खेती से निकालकर दूसरी फसलों की लाभप्रद वैकल्पिक खेती में लगाए। लेकिन करीब नौ साल बाद भी मामला स्वास्थ्य, कृषि और वाणिज्य मंत्रालय के बीच चिट्ठी-पत्री से आगे नहीं बढ़ पाया है।

इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत सरकार को केंद्रीय उत्पाद शुल्क या एक्साइज ड्यूटी के रूप में मिलने वाले राजस्व का करीब 13 फीसदी हिस्सा अकेले तंबाकू उत्पादों से मिलता है। मंगलवार को वित्त राज्यमंत्री एस एस पलानी माणिक्कम की तरफ से राज्यसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार को वित्त वर्ष 2011-12 में जनवरी 2012 तक केंद्रीय उत्पाद शुल्क से कुल 1,14,046 करोड़ रुपए मिले हैं। इसमें से करीब 14,804 करोड़ रुपए यानी 12.98 फीसदी एक्साइज ड्यूटी उसे सिर्फ तंबाकू उत्पादों से मिली है। इसमें से सबसे ज्यादा, 10,454 करोड़ रुपए का उत्पाद शुल्क सिगरेट से मिला है। इसके बाद 1074 करोड़ रुपए चबानेवाले तंबाकू से, 377 करोड़ रुपए बीड़ी से और 2899 करोड़ रुपए का उत्पाद शुल्क गुटखा समेत अन्य तंबाकू उत्पादों से मिला है।

जाहिर है, कोई भी सरकार आय का इतना बड़ा संसाधन नहीं छोड़ना चाहेगी। इसीलिए किसानों को तंबाकू की खेती से हटाने में हीलाहवाली की जा रही है। ऊपर से वित्त राज्यमंत्री का दावा है कि सरकार की तरफ से तंबाकू किसानों की पूरी मदद की जा रही है। तंबाकू बोर्ड तंबाकू किसानों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए सामूहिक व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा और जीवन बीमा योजनाएं उपलब्ध कराता है। मार्च 2010 से बेटी की शादी और बीमारी वगैरह में भी बोर्ड की तरफ से वित्तीय सहायता देने की योजना भी शुरू की गई है।

इस तरह किसानों को तंबाकू की खेती से चिपकाए रखने की कोशिशें जारी हैं। दूसरी तरफ स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने कृषि और वाणिज्य मंत्रालयों को अलग-अलग पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि तंबाकू किसानों को वैकल्पिक फसलों की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके लिए किसानों के बीच विशेष प्रोत्साहन योजनाएं चलाई जानी चाहिए क्योंकि डब्ल्यूएचओ के करार पर हस्ताक्षर करने के बाद यह सरकार की बाध्यता भी है। नोट करने की बात यह है कि ठीक 100 साल पहले 1912 में अंग्रेजों ने भारत में तंबाकू को प्रोत्साहित करने के लिए उसे नकदी फसल या कैश क्रॉप का दर्जा दिया था।

इस समय देश की करीब 0.25 फीसदी खेतीयोग्य जमीन (3.70 लाख हेक्टेयर) में तंबाकू की खेती की जाती है। इसमें से अधिकांश खेती पांच राज्यों – पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व गुजरात में की जाती है। देश में तंबाकू का कुल अनुमानित उत्पादन 6.20 लाख टन है जिसका बड़ा हिस्सा निर्यात किया जाता है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने केंद्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान (सीटीआरआई) को भी कहा है कि वह आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में वैकल्पिक फसलों का एक प्रोजेक्ट शुरू करे।

खबरों के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि कृषि मंत्रालय 12वीं पंचवर्षीय में वैकल्पिक खेती के लिए किसानों को नकद प्रोत्साहन देने की योजना चला सकता है, वहीं वाणिज्य मंत्रालय अपने अधीन आनेवाले तंबाकू बोर्ड से कुछ करने को कह सकता है। साथ ही वित्त मंत्रालय भी किसानों के लिए आसान कर्ज जैसी पेशकश कर सकता है। लेकिन वाणिज्य मंत्रालय चुप है। कृषि मंत्रालय संसद के मौजूदा बजट सत्र के बीत जाने का इंतजार कर रहा है। वहीं, वित्त मंत्रालय तंबाकू उत्पादों से मिलते उत्पाद शुल्क पर मगन है। इस तरह केंद्र सरकार ने नौ साल पहले किए गए तंबाकू-विरोधी अंतरराष्ट्रीय करार को अभी तक ठंडे बस्ते में डाल रखा है।

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