डेरिवेटिव्स में ऑप्शंस का सौदा सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसमें भी सबसे ज्यादा चलनेवाले ऑप्शंस दो तरह के होते हैं। एक कॉल ऑप्शंस और दो पुट ऑप्शन। कॉल ऑप्शन उसके धारक को नियत तिथि पर किसी आस्ति को पूर्व निधारित भाव या स्ट्राइक प्राइस पर खरीदने का हक देता है, लेकिन खरीदना उसकी बाध्यता नहीं होती। वहीं, पुट ऑप्शन उसके धारक को नियत तिथि पर किसी आस्ति को पूर्व निधारित भाव या स्ट्राइक प्राइस पर बेचने काऔरऔर भी

ऑप्शंस की चर्चा सोमवार को। उससे पहले हम फ्यूचर्स के कुछ खास-खास पहलू जान लें। कैश सेगमेंट में हम कोई स्टॉक जितने का खरीदते हैं, उतना मूल्य सौदा पूरा होते ही हमारे पास आ जाता है। लेकिन जब हम किसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदते हैं, तब उसकी कोई वैल्यू नहीं होती। उसमें वैल्यू या मूल्य तब आता है, तब उसका भाव सौदे के भाव से इधर-उधर होता है। मसलन, हमने कोई फ्यूचर्स सौदा 100 रुपए का खरीदा तोऔरऔर भी

दुनिया में डेरिवेटिव ट्रेडिंग की शुरुआत करीब 400 साल पहले हुई थी। इसके कुछ उदाहरण यूरोप में ट्यूलिप के फॉरवर्ड सौदे और जापान में चावल के फ्यूचर्स हैं। मशहूर कैंडल स्टिक पद्धति का आगाज़ जापान में चावल के फ्यूचर्स की ट्रेडिंग से ही हुई। दुनिया के सबसे पुराना फ्यूचर्स व ऑप्शंस एक्सचेंज – शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड का गठन 1848 में हुआ। वहीं, भारत में पहला फ्यूचर्स बाज़ार साल 1875 में बॉम्बे कॉटन ट्रेड एसोसिएशन के रूपऔरऔर भी

कोरोना वायरस के प्रकोप से देश को बचाने के लिए लॉकडाउन या घरबंदी की मीयाद 19 दिन और बढ़ा दी गई है। इस बीच शेयर बाज़ार छुट्टियों के अलावा बराबर खुला रहा। वह पस्ती से थोड़ा बाहर निकला नज़र आ रहा है। 24 मार्च को घरबंदी लागू होने से सोमवार 13 अप्रैल तक के मात्र बारह ट्रेडिंग सत्रों में निफ्टी-50 सूचकांक 15.29% बढ़ चुका है। लेकिन बाज़ार से अनिश्चितता का साया अभी तक उठा नहीं है तोऔरऔर भी