लालच जब भीड़ पर सवार हो जाए तो उसे भेड़ बनते देर नहीं लगती। लालच में चली भेड़चाल को रोक पाना सेबी ही नहीं, किसी भी नियामक के लिए मुश्किल है। ऐसे में हम रिटेल या व्यक्तिगत ट्रेडरों को ही आत्म-नियंत्रण का परिचय देना होगा। मोटी-सी बात है कि शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में कमाना या गंवाना शुद्ध रूप से प्रोबैबिलिटी या प्रायिकता का खेल है। साफ दिख रहा है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग में 91% व्यक्तिगत ट्रेडर गंवाते और केवल 9% ट्रेडर कमाते हैं। गंवाने की प्रायिकता 91/100 और कमाने की प्रायिकता 9/100 है। ऐसे रिस्क में पड़ना ही क्यों, जिसमें 100 में से 91 मौकों पर घाटा खाना पक्का हो। हमें कभी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि 100 में से 9 भाग्यशाली ट्रेडरों में से एक हो सकते हैं। रिटेल ट्रेडरों को हमेशा न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न कमाने का सूत्र पकड़ना चाहिए। अपनी ट्रेडिंग पूंजी को कभी आंच नहीं आने देना चाहिए। वैसे, सुखद बात यह है कि ‘हम भारत के ट्रेडर’ भी लगता है कि डेरिवेटिव्स के बजाय कैश सेगमेंट में ट्रेडिंग को ज्यादा अहमियत देने लगे हैं। सेबी की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2019-10 से 2024-25 तक के पांच सालों में इक्विटी डेरिवेटिव सेममेंट का टर्नओवर 23% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है, जबकि कैश सेगमेंट का इससे ज्यादा 25% की सीएजीआर से। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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