माल उतना ही और वहीं व उसी को बेचो, जहां से पेमेंट जल्दी से जल्दी मिल जाए। पेमेंट में देरी हो गई तो धंधा चौपट हो सकता है। यह सब्जी व किराना स्टोर से लेकर छोटे व बड़े बिजनेस तक का मंत्र है। हम अक्सर कंपनी की लाभप्रदता परखने के लिए इतना भर देखते हैं कि कहीं वह कर्ज के बोझ तले दबी तो नहीं और उसका ऋण-इक्विटी अनुपात हर हाल में एक से कम हो। लेकिन यह देखने की जहमत नहीं उठाते कि कंपनी जो माल बेच रही है, वह केवल कागजों में अटका तो नहीं है और बेचे गए माल का भुगतान कंपनी को मिलने में लम्बा वक्त तो लग नहीं रहा। देश के बहुत सारे लघु व मध्यम उद्यम (एमएसएमई) बड़े ग्राहकों का पेमेंट अटकने से संकट में फंस जाते हैं। एफएमसीजी कंपनियां यकीनन थोक व रिटेल तंत्र को साधकर सीधे आम उपभोक्ता को माल बेचकर अपना धन हासिल कर लेती हैं। लेकिन औद्योगिक ग्राहकों पर निर्भर उद्यमों को बहुत झेलना पड़ता है। आज तथास्तु में ऋण से लेकर भुगतान तक की समस्या सुलझानेवाली एक कंपनी…
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