क़ासिद के आते-आते खत इक और लिख दूं, मैं जानता हूं जो वो लिखेंगे जवाब में। सायास या अनायास, जो भी मानें, देश में बजट के सालाना अनुष्ठान का आज यही हाल हो गया है। दो दशक पहले तक लोगों को धड़कते दिल से इंतज़ार रहता था कि वित्त मंत्री क्या घोषणाएं करने वाले हैं। इनकम टैक्स में क्या होने जा रहा है। कस्टम व एक्साइज़ ड्यूटी के बारे में जहां आयातकों व निर्यातकों से लेकर छोटी-छोटी इकाइयां तक उत्सुक रहती थीं, वहीं कुछ विशाल औद्योगिक समूहों ने बाकायदा अपने सूत्र वित्त मंत्रालय में बैठा रखे थे।
लेकिन अब वैसी उत्सुकता नहीं रही। इस बार तो और भी नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही बता चुके हैं कि टैक्स प्राप्तियों में कितनी बढ़ोतरी होनी जा रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजट की कल्याणकारी धार का जिक्र 31 दिसंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में कर चुके हैं। तय है कि बजट में गांव गरीब, किसान मजदूर, महिलाओं व बुजुर्गों के लिए पुरानी के साथ नई योजनाओं का राग सप्तम होगा। सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र को दी गई सहूलियतों का नगाड़ा बचेगा। मध्यम वर्ग व नौकरीपेशा लोगों को खुश करते हुए इनकम टैक्स से छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर चार लाख की जा सकती है।
वहीं, कॉरपोरेट टैक्स के बारे में वित्त मंत्री 2015 में ही घोषणा कर चुके हैं कि अगले चार साल में उसे 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया जाएगा। इस घोषणा को दो साल होने जा रहे हैं। इस समय विभिन्न सेस व सरचार्ज को मिलाकर कॉरपोरेट टैक्स की कुल दर 34.41 प्रतिशत बनती है जो ब्रिक्स देशों में सबसे ज्यादा है। ब्राज़ील में प्रभावी कॉरपोरेट टैक्स की दर 34 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 28 प्रतिशत, चीन में 25 प्रतिशत और रूस में 20 प्रतिशत है। इसलिए बिजनेस करने की आसानी के नाम पर इसे घटाया जाएगा। प्रमुख उद्योग संगठन, सीआईआई चाहता है कि इसे 18 प्रतिशत पर ले आया जाए। वैसे, अपने यहां कंपनियों को टैक्स में तरह-तरह की रियायतें मिली हुई हैं। कंपनियां इनका भरपूर लाभ उठाती हैं और हमारा कॉरपोरेट क्षेत्र औसतन 23 प्रतिशत टैक्स ही देता है। सरकार की योजना है कि टैक्स रियायतों को खत्म करते हुए कॉरपोरेट टैक्स की दर घटा दी जाए।
इस बार सरकार ने नोटबंदी के जरिए टैक्स प्राप्तियां बढ़ाने की बड़ी मशक्कत की है। उसका लक्ष्य अर्थव्यवस्था में आधे से ज्यादा योगदान करनेवाले अनौपचारिक क्षेत्र को टैक्स देने पर बाध्य करना और उसे मुख्य धारा में ले आना है। उसका कहना है कि इसका असर अगले दो-तीन सालों में नज़र आएगा। हालांकि वित्त मंत्री ने अभी से दावा कर दिया है कि चालू वित्त वर्ष 2016-17 में कुल टैक्स संग्रह 16.31 लाख करोड़ रुपए के बजट अनुमान से ज्यादा रहेगा। बजट में माना गया था कि प्रत्यक्ष टैक्स (व्यक्तिगत इनकम टैक्स + कॉरपोरेट टैक्स) 12.64 प्रतिशत बढ़कर 8.52 लाख करोड़ रुपए और परोक्ष टैक्स (एक्साइज़, कस्टम व सर्विस टैक्स) 10.8 प्रतिशत बढ़कर 7.79 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। सरकार का दावा है कि नवंबर तक परोक्ष टैक्स संग्रह 26.2 प्रतिशत बढ़कर 5.52 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। वहीं, प्रत्यक्ष टैक्स संग्रह की रकम 19 दिसंबर तक बढ़कर 5.57 लाख करोड़ रुपए हो चुकी है।
सरकार ताल ठोंककर कहती है कि वह विकास को प्रतिबद्ध है और इसके लिए संसाधन जुटाने के वास्ते ही उसने नोटबंदी का महायज्ञ किया है। मालूम हो कि सरकार अपने खर्चों का इंतज़ाम टैक्स के साथ ही ऋण के ज़रिए भी करती है। हर साल बजट घोषणाओं को पूरा करने के लिए उसने कितना ऋण लेने का फैसला किया है, यह राजकोषीय घाटे से पता चलता है। इसकी सीमा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में बांध दी गई है। पिछले वित्त वर्ष 2015-16 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.9 प्रतिशत रहा था। चालू वित्त वर्ष 2016-17 में इसे जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रखने का लक्ष्य है। जेटली ने कहा है कि इसे हासिल कर लिया जाएगा। वहीं नए वित्त वर्ष 2017-18 में राजकोषीष घाटे को जीडीपी का 3 प्रतिशत रखा जाना पहले से तय है। वैसे, इस बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकार को आगाह किया है कि उसे उधार लेने की प्रवृति पर लगाम लगानी होगी।
खैर, सरकार के पास इतनी ताकत है कि वो टैक्स या ऋण से किसी न किसी रूप में ज़रूरी धन का इंतज़ाम कर ही लेगी। दिक्कत यह कि इस बार उसके खर्च पर शायद नए किस्म का कोहरा छा जाए। अभी तक खर्च की दो श्रेणियां होती थीं – आयोजना व्यय और आयोजना-भिन्न व्यय। मोटे तौर पर आयोजना व्यय में वे विकास पर किए जानेवाले खर्च आते थे। वहीं, आयोजना-भिन्न व्यय में मौजूदा तंत्र के रखरखाव पर होनेवाले खर्च आते थे। इनमें सरकारी तंत्र, वेतन-भत्ते, पेंशन, पुराने ऋणों की ब्याज अदायगी, सब्सिडी, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा से संबंधित खर्च शामिल थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बजट के कुल खर्च का 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा आयोजना-भिन्न व्यय में जाता रहा है। बाकी करीब 30 प्रतिशत ही खर्च ही विकास संबंधी आयोजना व्यय पर होता रहा है।
लेकिन सरकार इस साल से आयोजना और आयोजन-भिन्न व्यय की श्रेणियां बंद कर रही है। उसका तर्क है कि योजना आयोग की विदाई के साथ खर्च में इस विभाजन की ज़रूरत नहीं रह गई है। इसकी जगह अब पूंजी और राजस्व व्यय का विवरण दिया जाएगा जिससे ज्यादा साफ पता चल जाएगा कि विकास पर कितना खर्च हो रहा है और कितना तंत्र के रखरखाव पर। वह मानती है कि रक्षा व्यय विकास से जुड़ा है और इस बार उसमें काफी वृद्धि की उम्मीद है। यह अलग बात है कि हाल ही में उजागर हुए सैन्य और अर्ध-सैनिक बलों में छाए अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर सरकार कुछ नहीं बोलेगी। इस बार अलग रेल बजट का चक्कर भी खत्म हो रहा है। इसका सारा लेखाजोखा वित्त मंत्री ही पेश करेंगे। फिलहाल, सरकार बजट को जल्दी से जल्दी संसद से पास करा लेना चाहती है ताकि नए वित्त वर्ष के पहले दिन, 1 अप्रैल 2017 से ही उसे बेझिझक खर्च करने का पूरा प्राधिकार मिल जाए।
[यह लेख सोमवार, 16 जनवरी 2017 को प्रभात खबर के संपादकीय पेज़ पर छप चुका है]