वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में साल 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का कोई रोडमैप नहीं है। इसमें भले ही अगले पांच साल में 4.1 करोड़ युवाओं के लिए रोज़गार, कौशल व अन्य अवसर बनाने पर दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने की बात हो, लेकिन इसका कोई कार्यक्रम बजट में नहीं है। इस साल शिक्षा, रोज़गार व कौशल के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपए के प्रावधान की बात है। लेकिन जब एक साल में 1.48 लाख करोड़ तो पांच साल में दो लाख करोड़ का गणित समझ से परे है। यह असल में किसी घबराई हुई सरकार का राजनीतिक बजट ज्यादा नज़र आता है। कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में 25 साल तक के हर डिप्लोमाधारी और कॉलेज़ ग्रेजुएट को निजी या सरकारी कंपनी में एक साल की अप्रेंटिसशिप और एक लाख रुपए देने की बात की थी तो सीतारमण ने युवाओं को प्रति माह 5000 रुपए देने का प्रस्ताव रख दिया। इम्प्लॉयमेंट लिंक्ड स्कीम की बात भी उन्होंने कांग्रेस से उठा ली। आंध्र प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपए और बिहार को 59,000 करोड़ रुपए देना एनडीए सरकार की राजनीतिक मजबूरी है। चूंकि अर्थशास्त्री आर्थिक विकास के कारकों में सुधार की मांग कर रहे थे तो वित्त मंत्री ने उत्पादन के पांच कारकों – भूमि, श्रम, पूंजी, उद्यमशीलता व टेक्नोलॉज़ी में आर्थिक सुधार की बात कह डाली। लेकिन करना क्या है, इस बाबत कुछ नहीं बताया। अब बुधवार की बुद्धि…
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