माहौल जब देश के सबसे अहम सालाना दस्तावेज, बजट के आने का हो, तब खुद को किसी स्टॉक विशेष की चर्चा तक सीमित रखना ठीक नहीं लगता। वैसे भी सिर्फ शेयर या इक्विटी ही निवेश का इकलौता माध्यम नहीं है। आम लोग भी कहां शेयर बाजार में धन लगा रहे हैं! वित्तीय बाजार में उनके पसंदीदा माध्यम हैं निश्चित आय देनेवाले प्रपत्र। मुख्य रूप से एफडी। बांडों में निवेश का मौका मिले तो लोग कतई नहीं चूकते। एल एंड टी इंफ्रा से लेकर आईएफसीआई और भारतीय रेल वित्त निगम (आईआरएफसी) के बांड खटाखट कई-कई गुना सब्सक्राइब हो जाते हैं।
बांडों में सबसे अहम बात होती है कि उन पर ब्याज कितना है। और, उनके ब्याज का फैसला होता है कि सरकारी बांडों पर यील्ड की दर क्या चल रही है। और, यील्ड की दर इससे तय होती है कि सरकार किसी साल बाजार से कितना उधार उठाने का लक्ष्य तय करती है। यह उधारी इससे तय होती है कि वित्त मंत्री बजट में राजकोषीय घाटा कितना रखते हैं। इसलिए बांड, ब्याज दर, बजट और सरकारी उधार आपस में एकदूसरे से बुरी तरह जुड़े हुए हैं। बांडों में निवेश करनेवाले हर शख्स को बजट के इस पहलू को पकड़ना एकदम जरूरी होता है।
आप कहेंगे कि यह यील्ड क्या होती है? यह ब्याज से भिन्न कैसे है? यील्ड हमेशा उन बांडों पर गिनी जाती है जिनमें ट्रेडिंग होती है चाहे वो स्टॉक एक्सचेंजों में हो या रिजर्व बैंक द्वारा संचालित एनडीएस (नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम) के जरिए। जीरो कूपन बाडों को छोड़कर ब्याज की दर हर बांड पर पहले से तय रहती है। जैसे, 2022 में परिपक्व हो रहे 100 रुपए अंकित मूल्य के सरकारी बांडों पर ब्याज की दर 8.13 फीसदी रखी गई है। कल, 13 मार्च को इनका आखिरी सौदा 98.10 रुपए पर हुआ। लेकिन 98.10 रुपए लगाने पर भी उसे सालाना 8.13 रुपए का ब्याज मिलेगा। साल और ब्याज दर के असर को मिलाकर उसका वास्तविक रिटर्न 8.4052 फीसदी निकलता है। वास्तविक रिटर्न की इसी दर को यील्ड कहते हैं।
बांड बाजार में यील्ड की दर क्या चल रही है, इससे पूरे सिस्टम में ब्याज दर की दशा-दिशा का आभास मिलता है। यील्ड इससे तय होती है कि बाजार में बांडों का प्रवाह कितना है। सप्लाई ज्यादा तो दाम कम और सप्लाई कम तो दाम ज्यादा। बांडों के दाम ज्यादा तो यील्ड की दर कम और बांडों के दाम कम तो यील्ड की दर ज्यादा। बांडों के दाम और यील्ड में हमेशा व्यत्क्रमानुपाती रिश्ता होता है। एक के बढ़ने पर दूसरा घटता और एक के घटने पर दूसरा बढ़ता है।
हमारे यहां चूंकि ऋण बाजार की सबसे बड़ी ग्राहक खुद सरकार है। इसलिए बांडों के दाम और यील्ड की दर किस समय क्या रहेगी, इसका निर्धारण इस बात से होता है कि सरकार ने किसी वित्त वर्ष में बाजार से कितना उधार लेने का लक्ष्य बनाया है। मोटे तौर पर यह उधारी राजकोषीय घाटे से तय होता है। लेकिन दोनों में अंतर भी रहता है। जैसे, चालू वित्त वर्ष 2011-12 में राजकोषीय घाटे की रकम 4,12,817 करोड़ रुपए रखी गई थी, जबकि कुल बाजार उधारी का लक्ष्य 4,17,128 करोड़ रुपए का था। सरकार ने साल के बीच में दो बार उधारी की रकम बढ़ा दी। पहली बार 52,872 करोड़ रुपए और दूसरी बार 40,000 करोड़ रुपए। इस तरह पूरे वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने बाजार से 5.10 लाख करोड़ रुपए का उधार उठाया है।
शुक्रवार, 16 मार्च को वित्त मंत्री अपने बजट में तय करेंगे कि नए साल के लिए राजकोषीय घाटा क्या है और सरकार कितना उधार बाजार से जुटाएगी। बता दें कि ऋण या बांड बाजार के सबसे बड़ी खिलाड़ी हमारे बैंक व वित्तीय संस्थान हैं। बैंकिंग हलकों में चर्चा है कि नए साल में सरकार की बाजार उधारी 5 लाख करोड़ से लेकर 5.40 लाख करोड़ रुपए हो सकती है। इस साल सरकारी कंपनियों के विनिवेश का मामला जमा नहीं और सरकार को 40,000 करोड़ रुपए के लक्ष्य के विपरीत इस मद में करीब 14,000 करोड़ रुपए ही मिल पाए। परिणामस्वरूप उसे ज्यादा उधार लेना पड़ा। लेकिन अगर नए साल में विनिवेश का मामला कामयाब रहता है तो शायद सरकारी उधारी की रकम घट जाए।
जो भी हो, बाजार तो यही मानकर चल रहा है कि सरकार के खजाने की हालत दुरुस्त नहीं है और उसे बाजार से भारी-भरकम उधार लेना पड़ सकता है। यानी, बाजार में बांडों की भरमार रहेगी और बांडों के दाम घटेंगे। यही वजह है कि साल भर पहले मार्च 2011 में दस साल के सरकारी बांड पर यील्ड की दर जहां 7.99 फीसदी थी, वह अब फरवरी अंत तक 8.21 फीसदी पर आ गई और कल 13 मार्च को 8.40 फीसदी पर जा पहुंची।
बांडों पर ब्याज की दर इससे भी तय होती है कि रिजर्व बैंक ने अपनी नीतिगत दरें (रेपो व रिवर्स रेपो) क्या रखी हैं। लेकिन रिजर्व बैंक भी अपनी नीतिगत दरों को तय करने के पहले तजबीजता है कि सरकार बाजार से कितना उधार लेनेवाली है। इसलिए कल, 15 मार्च को ब्याज दरों में किसी भी कमी से वह बचना चाहेगा। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव को इंतजार है कि अगले दिन, 16 मार्च को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी कितने घाटे और कितनी उधारी का लक्ष्य पेश करते हैं।
हां, अंत में एक छोटी-सी सूचना। अभी इंफ्रास्ट्रक्चर बांडों में 20,000 रुपए तक का निवेश कर-मुक्त है। यह सीमा बजट में बढ़ाकर 50,000 रुपए की जा सकती है। यह रियायत 80सी के तहत मिली एक लाख और होम लोन के ब्याज पर मिली 1.50 लाख रुपए की छूट के ऊपर है। इस तरह नए साल में आप अपनी कर-योग्य आय 30,000 रुपए और घटा सकते हैं।