आयकर अपीली न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने नया आदेश जारी कर बोफोर्स के भूत को फिर से जिंदा कर दिया है। लेकिन समझ में नहीं आता कि 24 साल पुराना यह मामला जा कहां रहा है। आईटीएटी के बाद अब यह मसला बॉम्बे हाईकोर्ट में जाएगा और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में। तब तक रिश्वतखोरी के इस कांड से जुड़े सभी लोग स्वर्ग सिधार चुके होंगे। विन चड्ढा तो पहले ही दिवंगत हो चुके हैं। फिलहाल अहम सवाल यह है कि आयकर ट्राइब्यूनल के इस आदेश का आखिर शेयर बाजार के लिए क्या मतलब है?
कुछ लोग कहते हैं कि यह फालतू की घटना है। विपक्ष इस पर थोड़ा हल्ला-गुल्ला मचाएगा, लेकिन इससे कुछ निकलने वाला नहीं है। कुछ दूसरे लोगों का दावा है कि यह खुद कांग्रेस सुप्रीमो के दिमाग की उपज है क्योंकि इस समय बोफोर्स से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से लोगों का ध्यान हटाना है। 2जी स्पेक्ट्रम ने सरकार का सब कुछ दांव पर लगा दिया है, जबकि बोफोर्स में अभी कुछ भी दांव पर नहीं है।
एक तीसरी तबका है विद्वान पत्रकारों का जो इसे कांग्रेस के अंदरूनी संघर्ष के रूप में देखता है और मानता है कि यह ऐसे शख्स का काम हो सकता है जो पार्टी में ज्यादा ताकत व हैसियत पाना चाहता है। इस समुदाय का यह भी मानना है कि बोफोर्स मामले को इस तरह हवा देना बाजार के उन खिलाड़ियों के लिए बड़ा सुखद है जो राजनीतिक धन का वारा-न्यारा करते हैं। लेकिन मैं इन सभी की राय से इत्तेफाक नहीं रखता क्योंकि मुझे लगता है कि बाजार 15 जून तक अच्छी स्थिति में रहेगा और इस तारीख से पहले ही निफ्टी 7000 अंक तक पहुंच जाएगा।
इन सारी बातों के बावजूद मुझे देखना है कि इस मामले का क्या असर शेयर बाजार पड़ सकता है। बाजार हाल-फिलहाल ऐसे दौर से गुजर रहा है जब हर दिन घोटालों और राजनीतिक अनिश्चितता की बुरी खबर आ जाती है। यह मोटे तौर पर बाजार की मौजूदा कमजोरी का कारण है। फिर भी मैंने तो ऐतिहासिक तौर पर यही देखा है कि जब भी ऐसा माहौल बना है, बाजार ने खुद को जमाया है और बढ़त भी हासिल की है। इसका सीधा आधार यह होता है कि ऐसे में दौर में जमकर शॉर्ट पोजिशन बनती है और तेजड़ियों की बल्ले-बल्ले हो जाती है जो कहते लगते हैं ‘दिल और न मांगे मोर’। एफआईआई भी तेजी और मंदी के खेमे में बंट जाते हैं। इस तरह ऊंची छलांग के आदर्श हालात बन जाते हैं।
स्टॉक के स्वामित्व का स्वरूप मुख्य आधार है। आखिर नेस्ले, टाइटन और प्रॉक्टर एंड गैम्बल क्यों इतने ऊंचे और पहुंच से दूर हो गए हैं? बी ग्रुप के तमाम स्टॉक भी इन्हीं दिग्गजों के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं और ऐसी ही ऊंचाइयों पर पहुंच सकते हैं क्योंकि आपका मालिकाना इन स्टॉक्स पर नहीं है।
मैंने 2008 में लेहमान संकट के बाद आपसे वादा किया था कि मैं आईडीबीआई बैंक को 170 रुपए के ऊपर ले जाऊंगा और मैंने ऐसा कर दिखाया है। अब आप मुझसे लिखवा कर ले लें कि मैं आईएफसीआई को 125 रुपए (अभी तक का सर्वोच्च स्तर 118 रुपए) के पार ले जाऊंगा और उसके बाद यह स्टॉक स्थिर हो जाएगा। तब जहां न तहां से इसके बारे में रिपोर्टें आनी शुरू हो जाएंगी।
आप मेरी पसंद के चुनिंदा स्टॉक्स के बारे में अब तक जान चुके हैं। इसलिए मुझे उन्हें बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं है। अभी तक 40 से 50 निवेशक हैं जिन्होंने पांच सालों में अपने निवेश पर दस गुना रिटर्न (आरओआई) हासिल किया है जिसका मतलब होता है 200 फीसदी का सालाना रिटर्न। ऐसा मुझ पर और अपने विवेक पर भरोसा रखने के कारण ही संभव हुआ है।
आज सफल नेतृत्व के लिए किसी का अधिकार या सत्ता नहीं, बल्कि उसका प्रभाव मायने रखता है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)