भारत की अर्थव्यवस्था के साथ दुनिया में चल रही ‘ब्लैक फ्राइडे’ जैसी डील चल रही है। सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जब शुक्रवार, 29 अगस्त को घोषित किया था कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली, यानी जून तिमाही में हमारे जीडीपी की असली विकास दर 7.8% रही है, तब आम विद्वान ही नहीं, नॉर्थ ब्लॉक और भारतीय रिजर्व बैंक तक में बैठे नीतियां बनानेवाले बड़े-बड़े अफसरान तक चौंक गए थे। लेकिन इस बार 28 नवंबर, शुक्रवार को जब सरकारी विकास के उसी प्रवक्ता एनएसओ ने घोषित किया कि सितंबर 2025 यानी चालू वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में हमारा जीडीपी असल में पहली तिमाही से भी ज्यादा 8.2% बढ़ा है, तब तो दिल्ली व मुंबई तक बैठे नीति-नियामक अफसरों के होश उड़ गए और समूचा कॉरपोरेट क्षेत्र दहल गया। बाकी देश का हाल ही क्या कहना? जिस तरह 14 नवंबर 2025 को बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की बम्पर जीत ने सबको हतप्रभ कर दिया था, उसी तरह जीडीपी की बम्पर ग्रोथ को सारा देश दांतों तले उंगली दबाकर देख रहा है। वाकई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राजनीति में जो चमत्कार वोट-चोरी की अभिनव तकनीक अपनाकर दिखाया है, वैसा ही चमत्कार उनका तंत्र जीडीपी के साथ दिखा रहा है, जब असली नकली और नकली असली बनता जा रहा है।
दरअसल, मोदी सरकार जीडीपी का जो आंकड़ा पेश करती आ रही है, उसमें बड़ा लोचा है जिससे देश के 99.99% लोग अनजान हैं। जीडीपी के दो आंकड़े होते हैं। एक नॉमिनल और दूसरा रीयल। नॉमिनल की गणना मौजूदा मूल्यों पर की जाती है जो ऊपर-ऊपर दिखता है जिसमें झाग ही झाग होते हैं। रीयल की गणना 2011-12 के स्थाई मूल्यों पर की जाती है और वो झाग के नीचे की असली विकास दर होती है। मई 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जीडीपी की गणना का पूरा तरीका जनवरी 2015 से बदल दिया। इससे पहले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) जैसे वोल्यूम या मात्रा पर आधारित सूचकांकों से रीयल जीडीपी की गणना सीधे की जाती थी और उसमें फिर डिफ्लेटर जोड़कर नॉमिनल जीडीपी निकाला जाता था। सारा काम असली जीडीपी का है तो डिफ्लेटर और नॉमिनल जीडीपी तब खास किसी काम के नहीं थे। लेकिन मोदी सरकार मात्रा नहीं, मूल्यों के आधार पहले नॉमिनल जीडीपी निकालती है और फिर डिफ्लेटर लगाकर असली या रीयल जीडीपी बताती है। नतीजा जीडीपी पर झाग ही झाग छा गया और असली जीडीपी कहीं नीचे दब गया। कोढ़ में खाज यह कि डिफ्लेटर भी वैश्विक पैमाने का नहीं, बल्कि इनका अपना ही छद्म है।
दुनिया भर के तमाम विकसित और विकासशील देश असली जीडीपी निकालने के लिए डिफ्लेटर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन भारत इकलौता देश है जहां डिफ्लेटर का चोंगा पहनाकर भयंकर छल किया जा रहा है और सच छिपाया जा रहा है। अमेरिका समेत तमाम विकसित देश डिफ्लेटर के तौर पर प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (पीपीआई) का उपयोग करते हैं। यही स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय मानक भी है। भारत डिफ्लेटर के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का उपयोग करता है। दिक्कत यह है कि जहां पीपीआई में देश में मैन्यूफैक्चरिंग लेकर सेवा व कृषि तक हर क्षेत्र के उत्पादन व मूल्यों को कवर किया जाता है, वहीं डब्ल्यूपीआई में पेट्रोलियम तेल व स्टील जैसे जिंसों को ज्यादा वजन दिया गया है और वो सेवाओं को मापता ही नहीं, जिनका हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान लगभग दो-तिहाई है।
यही वजह है कि सितंबर 2022 के बाद जब देश में रिटेल मुद्रास्फीति ज्यादातर 5% से ऊपर चल रही थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जिंसों के दाम घटने से थोक मुद्रास्फीति बराबर घट रही थी। अप्रैल-दिसंबर 2023 के दौरान तो इसकी औसत दर ऋणात्मक में 1.59% हो गई थी। इस समय भी अपने यहां चार महीनों से थोक मुद्रास्फीति ऋणात्मक में चल रही है। अक्टूबर 2025 में यह (-) 1.21% रही है जो पिछले 27 महीनों का न्यूनतम स्तर है। इससे ठीक पहले सितंबर में यह (-) 1.15%, अगस्त में 0.52%, जुलाई में (-) 0.58% और जून में (-) 0.19% रही थी। जब रिटेल मुद्रास्फीति औसतन 4-5% चल रही हो, तब थोक मुद्रास्फीति को डिफ्लेटर बनाकर मोदी सरकार अभी से नहीं, पिछले दस साल से देश और दुनिया के साथ छल किए जा रही है। इस पर मोदी सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रह्मणियन और भारत के दो पूर्व सांखियकी अधिकारी प्रणब सेन व टी.सी.ए. अनंत तक सवाल उठा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) तक इस पर आपत्ति जता चुका है। अभी आईएमएफ ने दो दिन पहले ही जारी अपनी ताजा सालाना समीक्षा में कहा है कि भारत के जीडीपी, जीवीए और मुद्रास्फीति जैसे राष्ट्रीय आंकड़ों में कमियां व विसंगितयां हैं। इनके आधार पर उसने भारत के राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों को ए, बी, सी, डी में से सी यानी दूसरा सबसे कम, या घटिया ग्रेड दिया है। आईएमएफ ने भारत में जीडीपी की गणना में गलत डिफ्लेटर रखने पर गहरा ऐतराज जताया है।
सितंबर 2025 में सरकार की तरफ से जारी जीडीपी के आंकड़ों में कमाल यह किया गया है कि डिफ्लेटर को मात्र 0.5% दिखाकर रीयल विकास दर को 8.2% पर पहुंचा दिया है। इस दौरान जीडीपी की नॉमिनल विकास दर केवल 8.7% रही है जो चालू वित्त वर्ष 2025-26 में बजट की अनुमानित नॉमिनल विकास दर 10.1% से सीधे-सीधे 1.4% नीचे हैं। यह दर जून 2025 की 8.8% नॉमिनल विकास दर से भी कम है। लेकिन तब सरकार ने 1% डिफ्लेटर रखकर जीडीपी की रीयल विकास दर को 7.8% दिखाया दिया था, जबकि इस बार डिफ्लेटर को केवल 0.5% रखकर नया कमाल कर दिया है।
बता दें कि जीडीपी की नॉमिनल विकास दर पर ही देश के कॉरपोरेट क्षेत्र के बढ़ने का दारोमदार होता है। इसका 10% से नीचे जाना दिखाता है कि कंपनियों का धंधा बैठा जा रहा है या बैठने की कगार पर है। उपभोक्ता खपत पर आधारिर हिंदुस्तान यूनिलीवर, डाबर, ब्रिटानिया व एशियन पेंट्स ही नहीं, एचडीएफसी बैंक और स्टेट बैंक तक को अपना धंधा बढ़ाने में दिक्कत आ रही है। अवाम की वास्तविक आय घटने से परसनल केयर और उपभोक्ता उत्पादों की मांग कमज़ोर पड़ी है। ऊपर से कच्चे माल व लागत सामग्रियां महंगी होने से कंपनियों की हालत खराब है। ऐसे में हर तरफ जब अर्थव्यवस्था में समस्याएं ही समस्याएं दिख रही हों, तब किसी के लिए भी जीडीपी के उछाल के ‘चमत्कार’ को पचा पाना मुश्किल है। मोदी राज के 11 सालों में देश के भीतर आर्थिक विषमता बढ़ गई है। सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की 40% दौलत है। कच्चा तेल आयात हमारी निर्भरता 78-80% से बढ़ते-बढ़ते दुनिया में सबसे ज्यादा 90% हो गई है। आर एंड डी पर हमारा खर्च सालों-साल से जीडीपी के 0.65% पर अटका है जबकि चीन इस पर जीडीपी का 2.43%, दक्षिण कोरिया 4.5% और अमेरिका 2.8% खर्च करता है। फिर भी रीयल जीडीपी के जून 2025 तिमाही में 7.8% और सितंबर 2025 में 8.8% बढ़ा देना विशुद्ध रूप से मोदी सरकार और उसके तंत्र का वोट-चोरी जैसा ही छल है।
यह छल वैसे तो मोदी सरकार के आने के पहले ही साल वित्त वर्ष 2014-15 से चल रहा है। लेकिन तीन साल पहले वित्त वर्ष 2022-23 से यह खेल कुछ ज्यादा ही ‘निराला’ हो गया है। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में अनुमान था कि हमारा जीडीपी नॉमिनल स्तर या ऊपर-ऊपर 10.5% बढ़ेगा और 4% मुद्रास्फीति या डिफ्लेटर को घटाने के बाद जीडीपी की रीयल या असल विकास दर 6.5% रहेगी। लेकिन बाद में एनएसओ ने पूरे वित्त वर्ष का जो पहला अग्रिम अनुमान पेश किया, उसके अनुसार नॉमिनल विकास दर तो घटकर 8.9% रह गई, मगर असल विकास दर को बढ़ाकर उसने 7.3% कर दिया। डिफ्लेटर के इस खेल से सरकार और उसके अर्थशास्त्री निष्पक्ष अर्थशास्त्रियों को तो नहीं, लेकिन पब्लिक को ज़रूर झांसा देने में कामयाब हो जाते हैं। डिफ्लेटर का ही खेल है कि वित्त वर्ष 2022-23 में नॉमिनल जीडीपी की 16.1% की शानदार दर से बढ़ने के बावजूद असल विकास दर 7.2% निकली थी, जबकि 2023-24 में नॉमिनल जीडीपी 8.9% बढ़ने के बावजूद असल विकास दर पहले से ज्यादा 7.3% बता दी गई। देश के आमजन को आंकड़ों की यह बाज़ीगरी समझनी होगी। वे इसे अपनी ज़िंदगी की वास्तविक स्थिति और उसमें आए बदलाव से जोड़कर समझ सकते हैं।
