दुनिया एक बार फिर ट्रम्प द्वारा छेड़े गए टैरिफ युद्ध की दहशत में है। दक्षिण कोरिया व जापान पर 25%, ब्राज़ील पर 50%, मेक्सिको व यूरीपीय संघ पर 30% और यहां तक कि कनाडा पर 35% टैरिफ की धमकी। भारत-अमेरिका व्यापार संधि भी अनिश्चितता के घेरे में है। कुछ भी साफ नहीं। ट्रम्प ने भारत से कॉपर आयात पर 50% और दवाओं के आयात पर 200% तक टैरिफ लगाने की हुंकार भर रखी है। ऐसे में भले ही अमेरिका का शेयर बाज़ार ऐतिहासिक शिखर पर पहुंच गया हो, लेकिन अपने शेयर बाज़ार की सांसें अटकी हुई है। वो सीमित दायरे में भटक रहा है। लेकिन अगर साल-दो साल की बात करें तो तमाम कंपनियों के शेयर आपको 15% से 50-60% तक ऊपर नज़र आएंगे। यह कोई चमत्कार नहीं। जो कंपनियां अच्छा बिजनेस करती हैं, उनके शेयर आराम से साल भर में 12-15% बढ़कर मुद्रास्फीति को मात देते रहते हैं। यही धन का समय-मूल्य है जिसे देश के हर निवेशक ही नहीं, हर नागरिक को समझना ज़रूरी है। आर्थिक घटनाक्रम यकीनन शेयर बाज़ार को प्रभावित करते हैं, लेकिन केवल तात्कालिक रूप से। लम्बे समय में धन के समय-मूल्य को जाने बिना हम निवेश का मूलाधार नहीं समझ सकते। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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