इंसानों की बस्ती में हम या तो अपने या दूसरों के कर्मों का नतीजा भुगतते हैं। यहां छिपकर कहीं कोई खुदा नहीं बैठा जो हमारी सदिच्छाओं को पूरा करता रहे या बिना किसी बात के हमें दंडित करता रहे।
2011-09-18
इंसानों की बस्ती में हम या तो अपने या दूसरों के कर्मों का नतीजा भुगतते हैं। यहां छिपकर कहीं कोई खुदा नहीं बैठा जो हमारी सदिच्छाओं को पूरा करता रहे या बिना किसी बात के हमें दंडित करता रहे।
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