अगले महीने की पहली तारीख, 1 जुलाई 2010 से बैंकों में बेस रेट लागू करने की तैयारियां आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी हैं। निजी क्षेत्र के बैंक हरचंद कोशिश में हैं कि कैसे अपना बेस रेट सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कम रखा जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उनके पास आएं। गुरुवार को उनकी इस होड़ में नया पहलू तब जुड़ गया जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गर्वनर के सी चक्रबर्ती ने कह दिया कि आरबीआई बैंकों के बचत खातों (सेविंग्स एकाउंट) की ब्याज दर से भी नियंत्रण हटाने के पक्ष में है।
श्री चक्रबर्ती ने इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के साथ बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा, “हमने पिछली मौद्रिक नीति में इस पर बहस शुरू की थी। मतलब एकदम साफ है और हम बचत खाते समेत सभी ब्याज दरों से नियंत्रण हटाने के पक्ष में हैं। लेकिन ऐसा कब करना है, इसका फैसला पर्याप्त बहस के बाद ही लिया जाएगा।” असल में नई बैंक रेट प्रणाली को लेकर बैंकों में अब भी काफी अस्पष्टता है। जैसे, उनको साफ-साफ नहीं पता कि कि निर्यातकों व किसानों को दिए जानेवाले कर्ज पर सरकार उन्हें पहले की तरह सब्सिडी देगी या नहीं।
गौरतलब है कि बेस रेट वह ब्याज दर है जिससे कम पर बैंक किसी भी ग्राहक को कर्ज नहीं दे सकते हैं, चाहे वह निर्यातक या किसान ही क्यों न हो। अभी तक सरकार की तरफ से निर्यातकों व किसानों को दिए जानेवाले कर्ज पर ब्याज दर में औसतन 2 फीसदी की सब्सिडी दी जाती रही है। यह राशि सरकार सीधे बैंकों को दे देती है। लेकिन आगे क्या होगा, यह न तो रिजर्व बैंक और न ही वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है। बेस दर की गणना हर बैंक अपने हिसाब से कर सकता है। लेकिन इसमें उसके फंड की लागत और लाभ मार्जिन को आधार बनाया जाएगा। बेस रेट कम करने के चक्कर में इधर सभी बैंक येनकेन प्रकारेण अपनी कासा (चालू व बचत खाता) जमा बढ़ाने में लगे हुए हैं जिससे धन की लागत कम से कम रखी जा सके। बैंक चालू खाते पर तो कोई ब्याज नहीं देते, इसलिए वे बचत खाते की ब्याज दर को तय करने की आजादी चाहते हैं।
बता दें कि रिजर्व बैंक 1991 से शुरुआत करने के बाद धीरे-धीरे हर तरह की ब्याज दर से सरकारी नियंत्रण हटा चुका है। वह भले ही नियमित रूप से रेपो और रिवर्स रेपो दर के जरिए ब्याज दरों का संकेत देता है, लेकिन देश का हर बैंक कर्ज से लेकर जमा तक पर अपनी ब्याज दरें तय करने को स्वतंत्र हैं। अब केवल बचत खाते की ही ब्याज दर ऐसी है जिसे रिजर्व बैंक के जरिए सरकार तय करती है। बैंक इस दर में कोई अंतर नहीं रख सकते। यह पिछले करीब सात साल से 3.5 फीसदी पर स्थिर रखी गई है। बैंक चाहते हैं कि अब इस दर से भी सरकारी नियंत्रण हटा लिया जाए।
रिजर्व बैंक डिप्टी गर्वनर के सी चक्रबर्ती के मुताबिक ऐसा नहीं होगा कि नियंत्रण हटाते ही बचत खाते की ब्याज दरों में भारी फासला आ जाएगा। उन्होंने कहा कि यह बेहद प्रतिस्पर्धी बाजार है। यहां दाम बहुत ज्यादा इधर-उधर नहीं होते। लेकिन ब्याज दर क्या होगी, कस्टमर को क्या मिलेगा, यह बाजार की स्थितियों पर निर्भर करेगा।
गौरतलब है कि करीब साल पहले 17 जुलाई 2009 को रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर एस एस तारापोर ने मुंबई में आयोजित एक बैंकिंग सम्मेलन में सुझाव दिया था कि बचत खातों की ब्याज दर को भी मुक्त कर दिना जाना चाहिए। उनका कहना था कि रिजर्व बैंक को इन खातों की मौजूदा 3.5 फीसदी सालाना ब्याज दर को न्यूनतम दर बना देना चाहिए और बैंकों को छूट दे देनी चाहिए कि वे इसके ऊपर जितनी भी चाहें, ब्याज ग्राहकों को दे सकते हैं। संदर्भवश यह भी बता दें कि इस समय कुल जमा में कासा के हिस्से के मामले में एचडीएफसी बैंक सबसे आगे है। इसके बाद क्रमशः एसबीआई, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और यूनियन बैंक का नंबर आता है।