मलयेशिया में इलाज के लिए वैकल्पिक दवा के रूप में भारतीय आयुर्वेद काफी लोकप्रिय हो रहा है। ऐसे में मलयेशिया के विशेषज्ञ चाहते हैं कि भारत मलयेशियाई लोगों के बीच इस परंपरागत दवा की पहुंच बढ़ाने के लिए अपना सहयोग दे।
मलयेशिया में चीनी और भारतीय समुदाय में परंपरागत दवाओं की तुलना में परंपरागत चीनी दवाओं (टीसीएम) और भारतीय आयुर्वेद के साथ सिद्ध दवाएं काफी लोकप्रिय हैं। मलयेशियन सोसायटी फॉर कंप्लीमेंटरी मेडिसिन (एमएससीएम) के डॉ. ली चीन फेंग ने कहा कि कोई भी बीमार नहीं पड़ना चाहता। परंपरागत दवाओं के प्रतिकूल असर की वजह से आज समाज का रुझान हर्बल दवाओं की ओर बढ़ रहा है।
डॉ. ली ने कहा कि बाजार मांग के अनुसार टीसीएम दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता उद्योग है। उन्होंने कहा कि भारत हमारे प्राकृतिक हर्बल उत्पादों के दोहन के लिए सहयोग के लिए तैयार है। डॉ. ली ने बेंगलूर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ यूनानी मेडिसिन को प्राकृतिक जड़ी बूटियों के क्षेत्र में मलयेशिया के वन अनुसंधान संस्थान के साथ संयुक्त रूप से शोध के लिए आमंत्रित किया है।
उन्होंने कहा कि मलयेशिया में आयुर्वेदिक प्रणाली तेजी से बढ़ रही है। उनका कहना था, ‘‘मुझे इस बात पर आश्चर्य नहीं होगा, यदि ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रणाली के जरिए इलाज करवाने लगें।’’