सुप्रीम कोर्ट ने पैसा लेकर रातों-रात चंपत हो जाने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लाखों निवेशकों को बड़ी राहत देते हुए व्यवस्था दी है कि सरकार को इस तरह के धोखाधड़ी करने वाले संगठनों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि इस तरह का कानून संवैधानिक रूप से वैध है और यह भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों या कंपनी कानून के विरूद्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि देश में इस तरह के हजारों मामलों को देखते हुए यह एक स्वागतयोग्य उपाय होगा।
असल में कुछ फाइनेंसर कंपनियों ने तमिलनाडु प्रोटेक्शन आफ इंटरेस्ट आफ डिपाजिटर्स एक्ट, 1997 की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है। संक्षेप में तमिलनाडु एक्ट कहे जानेवाले इस कानून में सरकार को जमाकर्ताओं के धन की वसूली के लिए धोखेबाज कंपनियों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार दिया गया है।
न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू और ज्ञानसुधा मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में फाइनेंसर कंपनियों द्वारा जमाकर्ताओं को चूना लगाने की घटना को उन जमाकर्ताओं के विश्वास के साथ धोखा बताया है जो ऊंचा ब्याज पाने लिए पैसा जमा कराते हैं।
खंडपीठ ने कहा है, “आपत्ति के घेरे में लाया गया तमिलनाडु एक्ट संवैधानिक रूप से वैध है। वस्तुतः यह एक हितकारी कदम है जो इस तरह के घोटालेबाजों से निपटने के लिए लंबे समय से जरूरी है जो देश भर में टिड्डों की तरह पैदा हो गए है।”
वित्तीय कंपनियों का कहना था कि चूंकि रिजर्व बैंक कानून और कंपनी कानून पहले ही मौजूद हैं, इसलिए इस तरह का नया कानून संवैधानिक रूप से अवैध है। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि अदालतों को संवैधानिक प्रावधानों को देश के सामाजिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए परिभाषित करना चाहिए न कि यांत्रिक रूप से।