इस समय राजधानी दिल्ली में दुनिया भर के कृषि अर्थशास्त्रियों का सम्मेलन चल रहा है। शुक्रवार, 2 अगस्त से शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुधवार, 7 अगस्त तक चलेगा। यह सम्मेलन इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एग्रीकल्चरल इकनॉमिस्ट्स की तरफ से हर तीन साल पर आयोजित किया जाता है। उसका यह 32वां सम्मेलन भारत में 65 साल बाद हो रहा है। इसमें दुनिया के 75 देशों के लगभग एक हज़ार प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। भारत के लिए यह सम्मेलन विशेष अहमियत रखता है क्योंकि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने के बावजूद हमारी दो-तिहाई आबादी गांवों में रहती है और किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर है। यही नहीं, हमारी कामकाज़ी आबादी का 45.8% हिस्सा खेती-किसानों में खपा हुआ है, जबकि जीडीपी में कृषि का योगदान 14.52% तक सीमित है। एक तरह की छिपी हुई बेरोज़गारी के गरल को कृषि ने भगवान शिव या नीलकंठ की तरह अपने भीतर सोख रखा है। वो गरल निकलकर बिखर जाए तो सारे देश में हाहाकार मच जाएगा। भारत को विकसित देश बनाने की बात की जा रही है। लेकिन किसी भी विकसित देश में कृषि पर निर्भर आबादी 2% से ज्यादा नहीं है। अमेरिका में महज 1.5% लोग ही कृषि पर निर्भर हैं जो सारे देश का पेट भरने के बाद जमकर निर्यात भी करते हैं। अब सोमवार का व्योम…
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