कागज़ का रुपया साथ ले उड़ा सारे दावे

रुपया उड़ रहा है या डूब रहा है रसातल में? 16 दिसंबर को जब अमेरिकी डॉलर 91.09 रुपए का हो गया तो हर तरफ हंगामा मच गया। यह रुपए का आज तक सबसे निचला स्तर था। मज़ाक किया जाने लगा कि अंततः अमेरिकी डॉलर की विनियम दर ने उसके आईएसडी कोड़ (+1) को रुपए में भारत के आईएसडी कोड (+91) के बराबर कर दिया। उस दिन मंगलवार था। सरकार ने फौरन रिजर्व बैंक को निर्देश दिया और बुधवार को रिजर्व बैंक ने रुपए को संभालने के लिए बाज़ार में डॉलर झोंक दिए। फिर भी डॉलर 91.08 रुपए का होने के बाद किसी तरह सीढ़ी से नीचे उतरा। तब से बराबर रिजर्व बैंक बाज़ार में डॉलर झोंक रहा है और डॉलर की विनिमय दर 90 रुपए के नीचे 89.81 रुपए पर आ चुकी है। लेकिन माना जा रहा है कि यह अस्थाई शांति है और रुपया कभी भी उड़कर नए साल में 95 से लेकर 100 तक का सफर तय कर सकता है। रुपए की इस गति पर बाबा नागार्जुन की मशहूर कविता की लाइन याद आती है, “कागज़ का रुपया हंसता है, मतपत्रों की खींचतान में।” बिहार में चुनावों के दौरान 1.51 करोड़ महिलाओं को 10-10 हज़ार रुपए बांटकर कैसे मतपत्र लूटे गए, यह सभी जानते हैं। लेकिन मजबूत अर्थव्यवस्था और बढ़ते जीडीपी के दावों के बावजूद रुपया आखिर क्यों हवा में उड़ता जा रहा है, कोई नहीं जानता। अब सोमवार का व्योम…

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