सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दिल्ली और मुंबई के हवाई अड्डों को विकसित कर रही निजी क्षेत्र की कंपनियां घरेलू व अंतरराष्ट्रीय यात्रियों से एयरपोर्ट विकास शुल्क (एडीएफ) नहीं वसूल सकतीं। बता दें कि दिल्ली हवाई अड्डे का विकास व प्रबंधन जीएमआर इंफ्रास्ट्रक्चर और मुंबई एयरपोर्ट का विकास व प्रबंधन जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा प्रवर्तित कंपनियों के हवाले कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश सिरियाक जोसेफ और न्यायाधीश ए के पटनायक की पीठ ने हवाई अड्डों का विकास करने वाली कंपनियों की उस नीति को खारिज कर दिया जिसमें यात्रियों से हवाई अड्डा विकास (एडीएफ) शुल्क वसूला जा रहा था। एडीएफ के तहत दिल्ली से घरेलू उड़ान लेने वालों को 200 रुपए और अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए यात्रियों से 1300 रुपए लिये जाते हैं। मुंबई से घरेलू उड़ान पकड़ने वालों से 100 रुपए और अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए 600 रुपए बतौर एडीएफ लिये जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जीवीके पावर का शेयर 4.57 फीसदी और जीएमआर इंफ्रा का शेयर 3.16 फीसदी गिर गया।
पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को भी खारिज कर दिया जिसमें एडीएफ को बरकरार रखने की बात कही गयी थी। कंज्यूमर ऑनलाइन फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया। याचिका में दलील दी गई थी कि यह शुल्क गलत है क्योंकि एयरपोर्ट्स इकनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एईआरए) से इसकी मंजूरी नहीं मिली है।
याचिका में कहा गया था कि इस प्रकार का शुल्क केवल हवाई अड्डा प्राधिकरण लगा सकता है न कि दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (डीआईएएल) और मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (एमआईएएल) जो केवल हवाई अड्डा का प्रबंधन करती है। इससे पहले, हाईकोर्ट ने अगस्त 2009 में एनजीओ की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि निजी कंपनियां एयरपोर्ट के विकास के लिए यात्रियों से एडीएफ ले सकती हैं और इससे रोकना पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल की सफलता के लिए घातक होगा।