जब तय कर लिया कि आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकाली गई रकम के बाद बची बचत का कितना हिस्सा बैंक एफडी, सरकारी बॉन्ड, रीयल एस्टेट व सोने वगैरह में लगाने के बाद शेयर बाज़ार में लगाना है, उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती होती है कि किस कंपनी को लें और किसको झटक दें। इससे निपटने का तरीका यह है कि आठ-दस मानक बना लिये। जो कंपनी इन पर खरी उतरे, उसके शेयर स्मॉल-कैप, मिड-कैप और लार्ज-कैप के रिस्क और अपनी रिस्क प्रोफाइल में संतुलन बनाकर खरीद लिये और बाकी को बेझिझक किनारे रख दिया। दो-चार साल के लिए निश्चिंत हो गए। इन मानकों में कंपनी के धंधे, मुनाफे व लाभांश का ट्रैक-रिकॉर्ड, उसके बिजनेस की संभावना, उसे कितना स्केल-अप किया जा सकता है, उद्योग में प्रतिस्पर्धा की स्थिति, संबंधित उद्योग से जुड़ी सरकारी नीतियां, प्रबंधन की दक्षता, बाज़ार का आकार-प्रकार और शेयर का मूल्यांकन जैसे आधार शामिल हैं। कंपनी मूल्यांकन में सरचढ़ी हो तो उसे छूने से भी जलने का खतरा होता है। रिटेल निवेशकों को सटोरिया मानसिकता से भी बचना चाहिए और खटाखट नोट कमाने की किसी स्कीम में नहीं फंसना चाहिए। अब पेश है तथास्तु में आज की कंपनी…
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