जिंदगी भर बस अपनी ही चलाता रहा स्टीव जॉब्स, सिलिकन वैली का बागी

दुनिया से जाने के लिए 56 साल की उम्र कम नहीं होती तो ज्यादा भी नहीं। खासकर उस इंसान के लिए जो मां के गर्भ में ही विद्रोह के साथ आया हो। जी हां, मरते दम तक उसे सिलिकन वैली का विद्रोही नायक कहा जाता रहा। उसका जीवट कभी मंद नहीं पड़ा। लेकिन स्टीव जॉब्स का सारा जीवन व जीवट उनके पैक्रियाज के कैंसर ने निचोड़ लिया था। मरना तो एक औपचारिकता थी जिसे आज नहीं तो कल होना ही था।

डेढ़ महीने पहले 24 अगस्त को जॉब्स ने जब ऐपल के सीईओ पद से इस्तीफा दिया था, तब अखबारों ने उनकी युवावस्था की लकदक तस्वीरें छापी थीं। लेकिन वे उस वक्त तक इतने कृशकाय हो गए थे कि व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ता था। कैंसर ने उन्हें काम करने लायक छोड़ा ही नहीं था। स्टीव ने कंपनी के निदेशक बोर्ड को भेजे गए अपने त्यागपत्र में कहा भी था, “मैं हमेशा कहता रहा हूं कि जब भी किसी दिन मैं ऐपल के सीईओ के दायित्व व अपेक्षाओं को पूरा करने लायक नहीं रहूंगा, मैं सबसे पहले आपको बता दूंगा। दुर्भाग्य से वो दिन आ गया है।”

उसी दिन से उस इंसान की मौत की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी जिसने जीवन के एक-एक पल को अपनी शर्तों पर जिया था। उसने कभी किसी की सुनी ही नहीं। जन्म 24 फ़रवरी 1955 को सैन फ़्रांसिस्को में हुआ था। उनके माता पिता विश्वविद्यालय के अविवाहित छात्र-छात्रा थे। मां जोआन शिबल थीं और सीरियाई मूल के पिता का नाम अब्दुलफ़तह जंदाली था। इस अविवाहित जोड़े ने अपने बेटे को एक कैलिफ़ोर्निया के दम्पति पॉल और क्लारा जॉब्स को गोद दे दिया। उन्हें गोद देने के कुछ ही महीनों बाद स्टीव के असली मां-बाप ने शादी कर ली और उनकी एक बेटी मोना भी हुई। मगर मोना को अपने भाई के जन्म के बारे में तब तक नहीं पता चला, जब तक वह वयस्क नहीं हुईं।

स्टीव जॉब्स अपने नए मां-बाप के यहां पले-बढ़े। शुरू से ही हमेशा नया कुछ करने की पड़ी रहती थी। हाईस्कूल में उन्हें गर्मियों की छुट्टियों में ह्युलेट पैकार्ड के पालो आल्टो संयंत्र में काम करने का मौक़ा मिला। एक ही साल बाद उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और वीडियो गेम बनाने वाली कंपनी अटारी के साथ काम किया क्योंकि वह भारत जाने के लिए पैसे जमा करना चाहते थे। जॉब्स जब भारत से लौटे तो उन्होंने बाल घुटवा लिए। विद्रोही तेवर उन्हें एलएसडी के नशे तक ले गया। लेकिन चाहा तो उससे मुक्त भी हो गए। वे बौद्ध जीवन पद्धति में यक़ीन रखते थे। वे आजीवन शाकाहारी रहे और बौद्ध दर्शन को मानते रहे।

दुनिया के आईटी उद्योग में जॉब्स की बराबरी माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स से जाती है। बिल गेट्स का कहना है कि, “जॉब्स का गहरा प्रभाव आनेवाली कई पीढ़ियों तक महसूस किया जाएगा। हम भाग्यशाली हैं, जिन्हें उनके साथ काम करने का मौक़ा मिला। मैं उनकी कमी काफ़ी महसूस करूंगा।” वैसे गेट्स शिष्टाचार में कुछ ही कहें। लेकिन स्टीव जॉब्स के काम करने का तरीक़ा ऐसा था कि उनके साथ बहुतों के लिए कई बार काम करना मुश्किल हो जाता। उनका अपनी क्षमता पर भयंकर भरोसा था। लेकिन उनसे कोई असहमत हुआ तो उसे वे बहुत झेल नहीं पाते थे।

हां, लोगों के बीच कौन-सा उपकरण लोकप्रिय होगा, इसकी समझ उनमें जबरदस्त थी। इस बारे में उनका सूत्र वाक्य था, “आप उपभोक्ता से ये नहीं पूछ सकते कि आपको क्या चाहिए और फिर उसे वो बनाकर देने की कोशिश करें, क्योंकि जब तक आप वो चीज बनाएंगे, तब तक लोगों को कुछ और नया चाहिए होगा।” जॉब्स अपने काम के प्रति समर्पित थे। वे काले रंग की गोल गले वाली टी-शर्ट और फेड हो रही जीन्स में ही नए-नए उपकरण लॉन्च करते रहे। बिल गेट्स के विपरीत स्टीव जॉब्स ने जन-कल्याण और लोकहित का स्वांग नहीं किया। उन्होंने पर्यावरण की चिंता को भी अहमियत नहीं दी। ऐपल कंप्यूटर्स अक्सर ग्रीनपीस के निशाने पर रही है क्योंकि उसके उत्पाद आसानी से री-साइकल नहीं होते।

स्टीव जॉब्स ने 1976 में अपने पसंदीदा फल सेब के नाम पर ऐपल कंप्यूटर बनाने की शुरुआत की थी। इसमें उन्होंने अपने स्कूल के दोस्त वोज़नियाक को सहभागी बनाया। एक स्थानीय निवेशक को पटाकर ढाई लाख डॉलर का कर्ज़ लिया और कंपनी बना डाली। 1984 में मैकिंटॉश बनाया। लेकिन इस बीच ऐपल की वित्तीय मुश्किलें बढ़ने लगीं। बिक्री कम हो रही थी और कई लोग जॉब्स के तानाशाही रवैये से परेशान थे। इसके चलते कंपनी में सत्ता संघर्ष हुआ और जॉब्स को कंपनी से निकाल दिया गया।

1985 में जॉब्स ने नेक्स्ट कंप्यूटर नाम से कंपनी बनाई। इस कंपनी ने एक साल बाद ग्राफ़िक ग्रुप को ख़रीद लिया। लोकप्रिय फ़िल्म स्टारवॉर्स के निदेशक जॉर्ज लुकास से ख़रीदकर जॉब्स ने उसे नया नाम पिक्सर दिया। इस कंपनी ने ऐसा महंगा कंप्यूटर एनिमेशन हार्डवेयर बनाया जिसका इस्तेमाल डिज़नी सहित कई फ़िल्म निर्माण कंपनियों ने किया। जॉब्स ने कंप्यूटर निर्माण से ध्यान हटाकर कंप्यूटर के एनिमेशन वाली फ़िल्में बनानी शुरू कर दीं। इसी दौरान 1991 में उन्होंने लॉरीन पावेल ने शादी कर दी जो मृत्यु तक उनके साथ साथ रहीं। उनकी तीन संतानें हैं।

जॉब्स को कंप्यूटर एनिमेशन में बड़ी सफलता मिली 1995 में टॉय स्टोरी नाम की फ़िल्म से जिसने दुनिया भर में 35 करोड़ डॉलर बनाए। एक साल बाद ऐपल को नेक्स्ट ने 40 करोड़ डॉलर में ख़रीद लिया और जॉब्स उस कंपनी में वापस लौटे, जिसकी उन्होंने स्थापना की थी। जॉब्स ने बिना समय गवाए ऐपल के उस समय के सीईओ को हटा दिया और ऐपल के नुक़सान को देखते हुए कई उत्पादों का निर्माण बंद कर दिया।

कंपनी ने उसके बाद उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार का रुख़ किया। साल 2001 में लॉन्च हुआ आइपॉड एक स्टाइल का प्रतीक बन गया। इसके सफ़ेद इयर-फ़ोन और पतला डिज़ाइन ऐपल की पहचान बन गए। आइपॉड को आगे बढा़ने के लिए जॉब्स ने आई ट्यून्स भी लॉन्च किया जिससे लोग अपना संगीत इंटरनेट से डाउनलोड कर सकते थे। फिर तो 2007 तक जॉब्स का डंका गूंजने लगा। उन्होंने आईफ़ोन लॉन्च किया तो उसके लिए लोग दुनिया भर में घंटों-घंटों ऐपल के शोरूम के बाहर लाइन लगाकर खड़े रहे।

स्टीव जॉब्स का विशेष गुण यह था कि वे अपने व्यक्तिगत जीवन की छाया प्रोफेशनल जीवन पर भरसक नहीं पड़ने देते थे। साल 2003 में ही उन्हें पता चल गया था कि उन्हें पैंक्रियाज का कैंसर है। लेकिन 2004 में ऑपरेशन की स्थिति तक पहुंचने के बाद दूसरे लोगों को इसका पता चला। उन्होंने इसके पांच साल बाद 2009 में लीवर ट्रांसप्लांट भी करवाया। इसके बाद भी काम करते रहे। इस साल जनवरी में उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से छुट्टी ली और अगस्त में ऐपल के सीईओ के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। और, अब दुनिया से ही कूच कर गए। लेकिन दुनिया पर अपना अमिट हस्ताक्षर छोड़कर…

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