अप्रैल के पहले हफ्ते से गेहूं की सरकारी खरीद चालू है। दिखाने के लिए सरकारी खरीद के लंबे-चौड़े लक्ष्य तय किए गए हैं। लेकिन सरकार इस दिशा में कुछ खास करने नहीं जा रही। गेहूं की सरकारी खरीद में एफसीआई समेत अन्य सरकारी एजेंसियां ढीला रवैया अपनाएंगी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत लगभग एक दर्जन राज्यों में एफसीआई गेहूं खरीद से दूर ही रहने वाली है। ये राज्य केंद्रीय पूल वाली खरीद में नहीं आते हैं। गेहूं खरीद में इन राज्यों में निजी व्यापारियों का दबदबा होगा, जिसके आगे किसान बेबस नजर आएंगे।
गेहूं की सरकारी खरीद शुरू होने से पहले ही एफसीआई ने पंजाब और हरियाणा के गोदामों को खाली करने के लिहाज से दूसरे राज्यों में गेहूं व चावल का स्टॉक शिफ्ट करना शुरू कर दिया था। इसे लेकर उन राज्यों ने तीखा विरोध जताना शुरु कर दिया जहां बिना जरूरत के अनाज की आपूर्ति शुरू कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस बारे में खाद्य मंत्रालय और एफसीआई को पत्र लिखकर ऐसा करने से मना किया है।
भंडारण की समस्या से जूझ रही एफसीआई ने कारण बताए बगैर डिसेंट्रलाइज प्रोक्योरमेंट(डीसीपी) वाले राज्यों में चावल की खरीफ पर रोक लगा दी है। यही वजह है कि चावल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। डीसीपी राज्यों में एफसीआई अनाज की सीधी खरीद नहीं करती है। राज्यों की खरीद एजेंसियां एफसीआई के लिए अनाज खरीदती हैं। इस अनाज का उपयोग वहां की सार्वजनिक राशन प्रणाली में किया जाता है, जिससे लागत कम हो जाती है।
निजी व्यापारी व कंपनियों ने इस अहम समस्या को भांप लिया है। इसीलिए उन्होंने खरीद शुरू होने के साथ ही इन 11 राज्यों में अपना तंत्र फैला लिया है। गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कारगिल और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने अपना खरीद केंद्र खोलना शुरू कर दिया है। मंडियों के आढ़तियों को इन कंपनियों ने अपना खरीद एजेंट बना दिया है, जिसके मार्फत ये खरीद करेंगे। पुराने अनाज के भारी स्टॉक की वजह से गोदामों की कमी है। इसके मद्देनजर खरीद एजेंसियां गेहूं खरीद की गति धीमी ही रखेंगी। ताकि किसानों की ओर से विरोध के स्वर न उठें। इस बार निजी कंपनियों पर गेहूं खरीद के लिए कोई रोक नहीं है।