भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की बहुचर्चित जीवन आस्था पॉलिसी की परिपक्वता पर बीमाधारक को मिलनेवाले रिटर्न पर टैक्स देने को लेकर अब भी असमंजस बना हुआ है और इन पर एलआईसी या बीमा नियामक संस्था आईआरडीए नहीं, बल्कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ही कोई स्पष्ट राय पेश कर सकता है। एलआईसी के प्रवक्ता ने कहा कि इस एकल प्रीमियम पॉलिसी को आईआरडीए के साथ पूरे विचार विमर्श के बाद बनाया गया था। लेकिन पांच या दस साल बाद पॉलिसी के परिपक्व होने पर आयकर की धारा 10 (10 डी) के तहत रिटर्न को कर-मुक्त रखा जाएगा या नहीं, इसका फैसला सीबीडीटी ही कर सकता है।
इससे पहले एलआईसी के प्रबंध निदेशक डी के महरोत्रा ने एक खास बातचीत में बताया कि आयकर कानून की धारा 10 (10 डी) के तहत किसी भी जीवन बीमा पॉलिसी में मृत्यु-बाद मिलनेवाली राशि तो कर-मुक्त है, लेकिन परिपक्वता पर मिलनेवाली राशि अगर अगर किसी भी साल दिए गए प्रीमियम के पांच गुना से कम है तो उस पर आयकर देना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इसी बात को ध्यान में रखते हुए जीवन आस्था का पूरा ब्यौरा तैयार किया गया था। इसीलिए इसमें पहले साल का सम-एश्योर्ड दिए गए प्रीमियम का छह गुना रखा गया था। यह जरूर है कि बाद के सालों के लिए सम-एश्योर्ड पहले साल से लगभग एक तिहाई कर दिया गया है। लेकिन जीवन आस्था एकल प्रीमियम पॉलिसी थी। इसमें बीमाधारक ने केवल पहले साल प्रीमियम दिया है, इसलिए उसे पहले ही साल आयकर कानून की धारा 80-सी के तहत कर-लाभ मिलेगा। इस पॉलिसी की अवधि पांच या दस साल है। लेकिन बाद के सालों में बीमाधारक क्योंकि कोई प्रीमियम नहीं दे रहा है, इसलिए उसे कर-लाभ कैसे मिल सकता है। लेकिन एलआईसी प्रबंध निदेशक ने स्पष्ट नहीं किया कि जीवन आस्था की मैच्योरिटी पर बीमाधारक के जीवित रहने की सूरत में मिलनेवाले रिटर्न पर 10 (10 डी) के तहत कर-मुक्ति मिलेगी कि नहीं।
जीवन आस्था पर एलआईसी प्रबंध निदेशक की इस बात के बारे में जानेमाने निवेश सलाहकार संदीप शानबाग का कहना है कि इससे यही लगता है कि आखिर में मिलनेवाला रिटर्न कर-मुक्त हो सकता है। लेकिन इस मामले में 10 (10 डी) की अंतिम व्याख्या सीबीडीटी को ही करनी होगी। उन्होंने कहा कि एलआईसी ने जीवन आस्था में इस कानून के शब्दों का तो ध्यान रखा है, लेकिन इसकी भावना का उल्लंघन किया है।
उल्लेखनीय है कि एलआईसी की गारंटीड रिटर्न वाली जीवन आस्था पॉलिसी उसकी इस साल की सबसे हिट स्कीम रही है। 8 दिसंबर 2008 से लेकर 21 जनवरी 2009 तक 45 दिनों तक खुली इस स्कीम से एलआईसी ने 8189.6 करोड़ रुपए जुटाए हैं। इसे बेचते समय 9-10 फीसदी साधारण ब्याज और कर-मुक्त रिटर्न का जमकर प्रचार किया गया था। इसलिए लोगों ने इसमें जमकर पैसा लगाया।