जीडीपी के डेटा और उसे निकालने की पद्धति की छीछालेदर जब आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ही नहीं, देश में सक्रिय तमाम ब्रोकरेज फर्म और निवेश बैंक तक करने लगे, तब केंद्र सरकार में डेटा के शीर्ष पर बैठे मुख्य आर्थिक सलाहकार के कानों पर थोड़ी जूं रेंगने लगी। तय हुआ है कि नए साल 2026 में 12 फरवरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और 27 फरवरी की जीडीपी की नई सीरीज जारी होगी। दोनों का आधार वर्ष 2011-12 से बढ़ाकर 2022-23 कर दिया जाएगा। औद्योगिक मूल्य सूचकांक (आईआईपी) की संरचना भी बदली जाएगी। अभी तक तो जीडीपी के डेटा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) 8.4% बढ़ा है, जबकि इस दौरान आईआईपी 3.2% और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का उत्पादन 4.2% ही बढ़ा है। जापानी बहुराष्ट्रीय ब्रोकरेज़ फर्म नोमुरा सिक्यूरिटीज़ ने इस विसंगति पर तगड़े सवाल उठाए हैं। सवाल यह भी है कि जब जीडीपी इतनी ही रफ्तार से बढ़ रहा है तो पिछले दस साल में जीडीपी में निजी क्षेत्र के निवेश का हिस्सा 12.7% से घटकर 11.5% पर कैसे आ गया? यह भी कि इनपुट और आउटपुट में एक ही डिफ्लेटर क्यों? अब शुक्रवार का अभ्यास…
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