देश की 146 करोड़ आबादी में करीब 56 करोड़ 15 साल से कम उम्र के बच्चे या 65 साल के ऊपर के वृद्ध हैं। बाकी 90 करोड़ लोगों में से 70 करोड़ ऐसे हैं जो किसी तरह जीवन-यापन करते हैं। खुद पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी के अध्ययन के मुताबिक देश के 79.7% परिवार इतना भी नहीं कमा पाते कि कहीं भी निवेश का जोखिम उठा सकें। ऐसे में सरकार के पास खुला मैदान है कि देश के करोड़ों लोगों को जैसे चाहे, वैसे चरका पढ़ा दे। इन करोड़ों लोगों के पास जीवन की आपाधापी के बीच सिर उठाकर देखने की फुरसत ही नहीं कि सरकार बेहतरी व विकास के जो दावे कर रही है, उनमें कितनी सच्चाई है। चूंकि महंगाई का वास्ता देश के हर गरीब-अमीर से है और महंगाई सरकारी खातों में जाकर मुद्रास्फीति बन जाती है तो सरकार को मुद्रास्फीति का डेटा देते समय थोड़ा डरना चाहिए कि कहीं आमजन उसकी धोखाधड़ी को पकड़ न लें। लेकिन वो सत्ता के मद में इतनी अंधी है कि उसे किसी की परवाह नहीं। वो फर्जी विकास का ढोल पीटने की शुरुआत मुद्रास्फीति से ही करती है और यही मुद्रास्फीति जीडीपी की ‘रीयल’ विकास दर की नकली ‘रील’ का आधार बन जाती है। वो पिटती नॉमिनल दर को इससे ढांक-तोप देती है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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