जीडीपी का डेटा ऊपर-ऊपर जैसा दिखाता है, अंदर घुसने पर पता चलता है कि वैसा कतई नहीं है और हकीकत बड़ी दारुण है। आखिर जीडीपी का बढ़ना और निजी क्षेत्र के घटिया प्रदर्शन एक साथ कैसे? जीडीपी में निजी क्षेत्र से जुड़े दो सबसे बड़े हिस्से हैं पीएफसीई (प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर) या निजी खपत पर होनेवाला खर्च और निजी क्षेत्र का पूंजी निवेश। निजी खपत बढ़ती है तो निजी पूंजी निवेश भी बम-बम करता है। लेकिन पूंजी निवेश में निजी क्षेत्र का हिस्सा सालों-साल से 11% के आसपास अटका है। इस बीच सरकार का पूंजी निवेश वित्त वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक जीडीपी के 2.8% से बढ़कर 4.1% पर पहुंच गया। देश में हो रहे सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) की बात करें तो सितंबर 2025 के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक जीवीए में कृषि व मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान 14-14% है, जबकि सरकारी प्रशासन, डिफेंस व अन्य सेवाओं का योगदान इन दोनों से ज्यादा 16% है। इसके अलावा वित्तीय सेवाओं, रीयल एस्टेट व प्रोफेशनल सेवाओं का हिस्सा 27%, व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट, संचार व ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं का हिस्सा 17% और कंस्ट्रक्शन का हिस्सा 8% है। जीवीए में बाकी 4% हिस्सा खनन, बिजली, गैस व जल आपूर्ति वगैरह का है। सरकार इतनी ज्यादा, अवाम इतना कम! अब शुक्रवार का अभ्यास…
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