डेटा पर विश्वास टूटा, लीपा-पोती जारी!

जो बात दबी जुबान से कई सालों से कही जा रही थी, ‘अर्थकाम’ जिसको लेकर हल्ला मचाता रहा है, जिसे वो अर्थव्यवस्था के साथ वोट-चोरी जैसा अपराध बताता रहा है, जिसे देशभक्त व जागरूक अर्थशास्त्री बराबर उठाते रहे हैं और जिसे हाल में बिजनेस चैनल व पोर्टल भी उठाने लगे थे, वो अब जगजाहिर हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने अपनी ताजा सालाना समीक्षा में कहा है कि भारत के जीडीपी, जीवीए और मुद्रास्फीति जैसे राष्ट्रीय आंकड़ों में कमियां व विसंगतियां हैं। इनके आधार पर उसने भारत के राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों को ए, बी, सी, डी में से सी यानी दूसरा सबसे कम, या घटिया ग्रेड दे दिया। इसके बाद शुक्रवार, 28 नवंबर को सरकार ने जब जीडीपी के दूसरी तिमाही का डेटा पेश किया तो किसी को यकीन नही आया। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, “2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2% जीडीपी वृद्धि बहुत उत्साहजनक है।” लेकिन आश्चर्य की बात कि हमेशा हिंदी में बात और भाषण करनेवाले प्रधानमंत्री ने यह ट्वीट हिंदी में नहीं, अंग्रेज़ी में किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी अपनी पीठ थपथपाई। लेकिन उन्होंने संसद में सफाई दी कि आईएमएफ को जीडीपी का आधार वर्ष 2011-12 रखने पर आपत्ति है, जिसे बदलकर 2022-23 किया जा रहा है। लेकिन क्या महज इत्ती-सी बात है? अब सोमवार का व्योम…

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