देश के 80% परिवार इतना भी कमा नहीं पाते कि कहीं निवेश कर सकें। बाकी 20% में भी बहुतेरे ऐसे हैं जो जमकर कमाने के बाद भी कुछ बचा नहीं पाते। इनके लिए धन हाथ की मैल नहीं, बल्कि पानी की तरह है जो कोई न कोई जरिया खोजकर बहता रहता है। धन लोगों की आदतों, बर्ताव, भावनाओं, चाहतों, विश्वास, लालच, सुरक्षा व स्वभाव के अनुरूप कहीं टिकता तो कहीं फिसलता रहता है। दुनिया में मूल्यवान निवेश के पितामह माने गए बेंजामिन ग्राहम का कहना है, “निवेशक की मुख्य समस्या या कहें तो उसका सबसे बड़ा दुश्मन वो खुद है। दोष हमारी किस्मत या सितारों और हमारे स्टॉक्स में नहीं, बल्कि खुद हमारे अंदर होता है।” इसलिए धन का असली युद्ध बाहर नहीं, हमारे भीतर चलता है। जिस तरह इंजीनियर पानी के प्रवाह को समझकर उसकी दिशा तय करते हैं, उसी तरह हमें भी धन संबंधी अपनी आदतों व रुझानों को समझकर उसे दिशा देनी होती है। नहीं तो हथेली में गिरे पानी की तरह वो कभी बचता नहीं, हमेशा बहता ही रहता है। वैसे भी भारतीय परम्परा में सुखी व शांत जीवन के लिए खुद को जानने की सीख दी गई है। निवेश के लिए भी धन संबंधी अपने स्वभाव को जानना-समझना और दिशा देना ज़रूरी है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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