कहीं भरोसा नहीं, अपना दीपक खुद बनें

यह हमारे ही दौर में होना था। एक तरफ शेयर बाज़ार में अल्गो ट्रेडिंग के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई की धमक। दूसरी तरफ ट्रेडिंग व निवेश सिखानेवाला कोई शख्स कह रहा है, “कर्ता कृष्ण और दाता राम हैं। हम तो निमित्र मात्र हैं।” यह कैसा विरोधाभास है? लेकिन यह विचित्र, किंतु सत्य है। ऊपर से भोले-भाले व लालच में फंसे लोगों के लिए डिफाइन येज और नॉयज़लेस चार्ट के ‘प्वॉइंट्स एंड फिगर्स’ जैसे धांसू जुमले। इनके जुमलों में फंस गए तो महाराष्ट्र के बदनाम पारधी लुटेरों की तरफ आपकी चड्ढी तक उतार ले जाएंगे। मैं भी करीब आठ साल पहले ऐसे ही लुटेरों के चंगुल में फंसा था। फीस के ₹30,000 और ट्रेडिंग के ₹50,000 लेकर उड़ गए। मैं कुछ नहीं कर सका। हिंदी में ट्रेडिंग पर कोई किताब नहीं है। अंग्रेज़ी में चार मूलभूत किताबें हैं, जिन्हें मैं आप सभी को पढ़ने की सलाह दूंगा। नसीम निकोलस तालेब की Fooled by Randomness और The Black Swan जो आपको मुंबई या दिल्ली में फुटपाथ पर ₹100-150 में मिल जाएंगी। दो अन्य किताबें हैं डॉ. अलेक्जैंडर एल्डर की Come into my Trading Room और Trading For Living जिनकी पीडीएफ फाइल आपको नेट पर मिल जाएगी। धैर्य से इन्हें पढ़ने के बाद ही ट्रेड़िंग की तरफ अपना पहला कदम बढ़ाएं…

अपना दीपक खुद बनें: यह भी ध्यान रखें कि जिस देश व समाज में कोई सिस्टम न हो, हर तरफ अंधेरगर्दी छाई हो, वहां तंत्र से बचकर चलने में ही अपने सुरक्षा व भलाई है। अपने यहां सबसे भाग्यशाली वे लोग हैं जिनका कभी अफसरशाही, पुलिस या कोर्ट-कचेहरी से कोई पाला नहीं पड़ता। इनके चक्कर में फंसे तो ये अच्छे-खासे भले मानुष को निचोड़कर फेंक देते हैं। अपने यहां रिटेल ट्रेडर को खुद को बचाने का काम खुद ही करना है। इसके लिए उसे कभी ऐसा कोई काम ही नहीं करना चाहिए, जिसमें बीएसई व एनएसई जैसे स्टॉक एक्सचेजों, पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी या भारत सरकार के कॉरपोरेट मामलात मंत्रालय से गुहार लगानी पड़े। यह सच है कि सेबी की वेबसाइट है। यहां तक निवेशकों के लिए उसने अलग वेबसाइट बना रखी है। साथ निवेशकों की शिक्षा के लिए उसका मोबाइल एप्प Saa₹thi 2.0 भी है। आपको ज़रूर इनका उपयोग करना चाहिए। लेकिन यह उन्मीद न रखें कि वहां से आपको काम व व्यवहार की कोई सीख मिल जाएगी या ब्रोकर व किसी अन्य मध्यवर्ती के खिलाफ शिकायत का निपटारा हो सकता है। वहां, सब कुछ दिखाने को है, सुलझाने को नहीं। शेयर बाज़ार में निवेश व ट्रेडिंग के लिए आपको अपना दीपक खुद बनना होगा। करीब ढाई हज़ार पहले हमारे-आप जैसे एक सच्चे इंसान गौतम बुद्ध ने यही सीख दी थी कि अप्प दीपोभव।

न चैनल, न अखबार, न एनालिस्ट: ट्रेडिंग या निवेश के लिए कभी भी बिजनेस अखबार, न्यूज़ चैनल, बिजनेस पोर्टल या यू-ट्यूब चैनल पर आनेवाले किसी एनालिस्ट की सलाहों पर भरोसा न करें। ब्रोकरों की भी न सुनें। ये सब के सब खुद बाज़ार में एक पक्ष होते हैं। सभी खेले-खाए अधाए लोग हैं। फिर भी उन्हें बाज़ार से और ज्यादा कमाना होता है। वे कभी आपके काम की निष्पक्ष सलाह नहीं दे सकते। इसलिए उनके झांसे में कभी भी न आएं। अपनी रिसर्च खुद करें। स्टॉक का चयन किसी के कहने पर नहीं, अपने सिस्टम से परखने के बाद खुद करें। धीरे-धीरे आपका अपना लाभकारी सिस्टम विकसित और पुष्ट होता जाएगा। हमें धंधेबाज़ नहीं बनना है। न ही अपने बाज़ार में सक्रिय तमाम धंधेबाज़ों जितना नीचे गिरना आम भारतीय के लिए आसान है।

हमें बुद्धत्व हासिल करने वाला ऐसा प्रोफेशनल ट्रेडर बनना है जिसे अपनी सीमाओं और वित्तीय बाज़ार के स्वरूप को लेकर किसी किस्म का कोई मुगालता न हो। हम एक बार में एक या आधा कदम ही चलें। न डरें, न दुस्साहस करें। न शिकार बनें, न किसी का शिकार करें। किताबों और व्यवहार से सीखते जाएं। सच यही कि कि न तो दुनिया और न ही शेयर बाज़ार हमारी सदिच्छाओं से चलता है। फिर भी हम अपनी इच्छाएं थोपने से बाज नहीं आते। सोच लिया कि फलानां शेयर बढेगा तो दूसरों से इसकी पुष्टि चाहते हैं। वही टेक्निकल इंडीकेटर पकड़ते हैं जो हमारी धारणा को सही ठहराते हों। कोई इंडीकेटर उल्टा संकेत देता है तो हम उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ध्यान दें, भाव इंडीकेटर के पीछे नहीं, इंडीकेटर भाव के पीछे चलते हैं। सींमित इंडीकेटरों का इस्तेमाल करें। वे ट्रेडिंग का रिस्क कम कर सकते हैं, मिटा नहीं सकते।

ट्रेडिंग में धन दनादन नहीं: जब हम शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग की तरफ लपकते हैं तो बस इतना भर दिखता है कि वहां धन ही धन है। न बॉस, न ऑफिस जाने का झंझट। कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्टफोन चालू करो। बाज़ार देखो। सौदे करो और नोट बनाते जाओ। हम यह नहीं देख पाते कि नोट तक पहुंचने की राह में कितनी बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं जो हमारे बैंक खाते से लेकर आत्मविश्वास तक के परखच्चे उड़ा सकती हैं। आदर्श बाज़ार जैसा कुछ नहीं। वो महज एक परिकल्पना है। निहित स्वार्थ बाज़ार को अपने हिसाब से नचाते हैं। इसलिए देश ही नहीं, विदेश तक में बराबर घोटाले सामने आते रहते हैं। लेकिन पकड़े जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई भी होती है। अपने यहां आए दिन हज़ारों निवेशकों से करोड़ों साफ करने की खबरें आती रहती हैं। लेकिन इन्हें छलनेवालों के खिलाफ वाजिब कार्रवाई होती तो ये घटनाएं रुक सकती थी। लेकिन ऐसी घटनाओं थमने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। अपने यहां तो शेयर बाज़ार के भीतर तक सही शक्तियों के साथ ही ऑपरेटर भी खूब खेल करते हैं। बहुत सारे स्टॉक्स ऑपरेटरों द्वारा चलाए जाते हैं। हमें ऐसे स्टॉक्स को हाथ तक नहीं लगाना चाहिए।

ट्रेडिंग कोई रॉकेट-साइंस नहीं: हम सावधानी से अपना सिस्टम बनाकर चलें तो शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग से कमाना कोई रॉकेट-साइंस नहीं है। निवेश करना यकीनन काफी कठिन है जिसके लिए कंपनी के बिजनेस की तह में पैठने के साथ गहरी रिसर्च व समझ की ज़रूरत है। लेकिन ट्रेडिंग में केवल व्यापारी बनना है, कोई बिजनेस नहीं करना। न वर्किंग कैपिटल का झंझट, न कच्चे माल का और न ही बाज़ार की ऊंच-नीच व संभावनाओं का। बस थोक के भाव खरीदो और रिटेल के भाव बेचो। स्टॉप-लॉस को इस धंधे की लागत समझो और थोक व रिटेल भावों के अंतर से हर लागत घटाकर थोड़ा-थोड़ा मुनाफा कमाते जाओ। दिग्गज अर्थशास्त्री से लेकर आम इंसान तक जानता है कि भाव डिमांड व सप्लाई से तय होते हैं। सप्लाई बंधी या कम रहे और डिमांड बढ़ जाए तो भाव पक्का चढ़ जाते हैं। जहां सप्लाई और डिमांड का संतुलन टूटता है, भाव वहीं से रुख बदल लेते हैं। यह सर्वमान्य सच है। मतभेद इसको लेकर हो सकता है कि कौन-सी चीजें डिमांड और सप्लाई को प्रभावित कर रही हैं। लेकिन रिटेल ट्रेडर को इसके लेकर बहुत मगजमारी नहीं करनी चाहिए।

बाज़ार की लौ पर टूटते करोड़ों पतंगे: देश में शेयर बाज़ार के निवेशकों व ट्रेडरों की संख्या बढ़ती जा रही है। देश के 99.85% पिनकोड कवर हो चुके हैं। एनएसई की मासिक पत्रिका मार्केच पल्स के नवंबर 2025 के अंक के मुताबिक पिछले पांच साल में अलग पैन नंबर वाले पंजीकृत निवेशकों की संख्या 3.10 करोड़ से बढ़कर 12.18 करोड़ हो चुकी है। देश में डीमैट खातों की संख्या इस समय 21 करोड़ है जिसमें से 16.77 करोड़ सीडीएसएल के पास और 4.23 करोड़ एनएसडीएल के पास हैं। इनमें से 30 लाख खाते तो अक्टूबर 2025 में ही खुले हैं। बीएसई के मुताबिक पंजीकृत निवेशकों की संख्या 23.38 करोड़ हो चुकी है।

भारतीय शेयर बाज़ार में सक्रिय निवेशकों की संख्या पिछले दस साल में करीब 23% की सालाना चक्रवद्धि दर से बढ़ी है। 2015 में यह संख्या 48 लाख हुआ करती थी तो 2025 में 3.80 करोड़ तक पहुंच चुकी है। असल में जब भी बाज़ार बढ़ता है, शेयरों के भाव नई ऊंचाई बनाते हैं, तब ज्यादातर लोगों को शेयर खरीदने में बड़ी सुरक्षा महसूस होती है। वहीं, भावों के गिरने पर वे किसी भी कीमत पर बेचकर निकल लेने की फिराक में रहते हैं। यह मानसिकता दीर्घकालिक निवेश व अल्पकालिक ट्रेडिंग, दोनों के लिए घातक है। देश के इन करोड़ों निवेशकों व ट्रेडरों को सन्निपात जैसी स्थिति से निकालना है तो उनकी शिक्षा से लेकर सुरक्षा तक के पुख्ता इंतजाम होने ज़रूरी हैं। सरकार व सेबी से कोई उम्मीद नहीं। इसलिए फिलहाल यह काम खुद निवेशकों व ट्रेडरों को ही करना होगा।

अभ्यासेन कौन्तेय: अंत में बचपन में सुनी-बोली गई कुछ पंक्तियां। मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है। हाथ लगाओ, डर जाएगी। बाहर निकालो, मर जाएगी। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में कमाई हमारे हाथ से ऐसे ही छटकती रहती है। दुनिया भर में बहुतेरे लोगबाग तो इससे कमा ही रहे हैं! फिर आखिर हम ही क्यों चूक रहे हैं? कहां हो रही है हमसे भूल-गलती? कौन-से गुर हमारे पास नहीं हैं? सोचिएगा तो मिल जाएगा जबाव। हम मोटे तौर पर यही कह सकते हैं कि नया सीखने के लिए पुराना बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। इसमें विचार व विश्वास और उनके बनी आदतें शामिल हैं। असल में, विचार और विश्वास धीरे-धीरे अनजाने ही हमारी आदत का हिस्सा बनते जाते हैं। फिर इन्हीं के चश्मे से हम सच को देखने लगते हैं और वो टेढ़ामेढ़ा हो जाता है। विकृत सच हमें गलत एक्शन को उकसाता है। हम हारने और खीझने लगते हैं। लेकिन आदत की ताकत हासिल कर चुके विचारों तक को बदला जा सकता है। इसका अचूक तरीका है अभ्यास। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं अभ्यासेन कौन्तेय।

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