खेल खिलाड़ियों का, पंगा लेना खतरनाक

शेयर बाज़ार का उठना-गिरना कभी भी अर्थव्यवस्था की सेहत का पैमाना नहीं होता। एफआईआई अगर हमारे शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें यहां से मुनाफा कमाने की गुंजाइश दिखती है। यही नहीं, बाकी जो भी शेयर बाज़ार में धन लगाते हैं, उनका एकमात्र मकसद फटाफट ज्यादा से ज्यादा धन कमाना है। अर्थव्यवस्था का मजबूत या कमज़ोर होना सिर्फ खरीदने-बेचने का माहौल बनाता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। एफआईआई इस मायने में बड़े सच्चे और ईमानदार होते हैं कि उन्हें अपने निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाकर देना है। इसके लिए वे दुनिया में हर उस जगह पर जाते हैं, जहां कम से कम रिस्क में ज्यादा से ज्यादा कमाया जा सकता है। किसी देश से उनका कोई जुड़ाव या दुराव नहीं होता। अर्जुन की तरह उनकी निगाह बस चिड़िया की आंख या अधिकतम सुरक्षित मुनाफा कमाने पर रहती है। बाकी उन्हें कुछ नहीं दिखता। यह अलग बात है कि भारत के तमाम भ्रष्ट उद्योगपति और राजनेता एफआईआई के रूट का इस्तेमाल अवैध कमाई को वैध बनाने के लिए करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। इनकी राजनीतिक पहुंच इतनी जबरदस्त है कि सेबी, सुप्रीम कोर्ट, सरकार या संसद तक इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। सबके स्वार्थ इनसे जुड़े हैं तो कोई भी इन्हें हाथ नहीं लगाता। बाज़ार में और भी शातिर खिलाड़ी हैं…

म्यूचुअल फंडों का निराला खेल: आमतौर पर भारतीय शेयर बाज़ार की दशा-दिशा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) या विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) तय करते हैं। लेकिन, दरअसल इस बाज़ार के सबसे बड़े खिलाड़ी म्यूचुअल फंड हैं। वे आम निवेशकों के मिले धन की बदौलत पूरे बाज़ार से खेलते हैं। खासकर हर वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में। कानून के मुताबिक हर म्यूचुअल फंड को 31 मार्च तक के लाभ व हानि के साथ ही एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) की घोषणा एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अखबार में करनी होती है। यह काम वे मार्च तिमाही के बीतने पर जल्दी से जल्दी, अमूमन 10 अप्रैल तक कर देते हैं। इन नतीजों को दिखाकर म्यूचुअल फंड दम भरते हैं कि कैसे उन्होंने बाज़ार या सूचकांकों और दूसरे म्यूचुअल फंडों से बेहतर प्रदर्शन किया है।

इस लक्ष्य को अंजाम देने के लिए वे मार्च अंत में जमकर खरीद करते हैं ताकि अपनी स्कीम में शामिल शेयरों के भाव बढ़ाए जा सकें जिससे उनका एनएवी चढ़ जाए और वे दूसरों पर भारी पड़ जाएं। इसलिए अगर कोई राष्ट्रीय आपदा न आ जाए, दुनिया में भयंकर युद्ध न छिड़ जाए या कोरोना जैसी महामारी न आ जाए तो मार्च का महीना शॉर्ट सेलिंग करनेवालों पर बहुत भारी पड़ता है क्योंकि उनका सारा गणित म्यूचुअल फंड अपने स्वार्थ के लिए बाज़ार को चढ़ाकर चौपट कर देते हैं। सामान्य साल में म्यूचुअल फंड एनवीए बढ़ाने के लिए निवेशकों के धन का बेजा इस्तेमाल करते हैं। यह उनकी इन-बिल्ट बदमाशी है। अगर कोई सोचे कि मार्च अंत में किसी छोटी-मोटी बुरी खबर का फायदा उठाकर शॉर्ट सेलिंग से कमा सकता है तो वो अपन ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है क्योंकि बाज़ार के सबसे तगड़े खिलाड़ी – म्यूचुअल फंडों से पंगा लेना उसे भारी पड़ेगा।

एलआईसी सब पर भारी, खेल सरकारी: अपने शेयर बाज़ार में म्यूचुअल फंडों से कहीं ज्यादा शातिर खिलाड़ी है भारतीय जीवन बीमा निगम या एलआईसी, जिसका नारा है जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी। यह वाकई बाज़ार को न जीता छोड़ती है और न ही मरने के बाद छोड़ती है। है तो इसमें भी करीब 29 करोड़ पॉलिसीधारकों की तरफ से बतौर प्रीमियम जमा कराई गई कुल 28 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की पूंजी। लेकिन शेयर बाजार में लिस्टिंग के बावजूद इसका 96.50% मालिकाना भारत सरकार के पास है तो यह बाज़ार में सरकार के एजेंट की तरह ही काम करती है। सरकार जहां कहती है, यह उठाकर पालिसीधारकों का धन लगा देती है। जिस तरह वॉशिंगटन पोस्ट के खुलासे के मुताबिक उसने विवादों में घिरे अडानी समूह की कंपनियों में 3.90 अरब डॉलर (करीब 34,500 करोड़ रुपए) डाले हैं, उससे कहीं से नहीं लगता कि वो अपने 3.50% आम निवेशकों का ज़रा-सा भी ख्याल रखती है। वैसे भी करीब साढ़े तीन साल पहले मई 2022 में आईपीओ में 949 रुपए पर उसका शेयर खरीदनेवाले आज भी रो रहे हैं क्योंकि वो शयर अब भी इश्यू मूल्य से नीचे 910 रुपए के आसपास डोल रहा है।

फिर भी एलआईसी पॉलिसीधारकों और अपने निवेश से जमकर मुनाफा कमा रही है। सितंबर 2025 की तिमाही में उसका शुद्ध लाभ साल भर पहले की समान अवधि से 32% बढ़कर 10,098 करोड़ रुपए हो गया है। बीते वित्त वर्ष 2024-25 में उसने 48,320 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। उसके पास इस समय 1,34,730 करोड़ रुपए के रिजर्व हैं। लेकिन इसका आम निवेशकों और पॉलिसीधारकों को क्या फायदा? केवल सरकार एलआईसी का इस्तेमाल शेयर बाज़ार को अपने हित में नचाने और अपने ‘मित्रों’ का फायदा कराने के लिए कर ही है। लेकिन इतना तय है कि एलआईसी जब चाहें, तब शेयर बाज़ार को मनचाही दिशा देती रहती है। एफआईआई की बिकवाली को संभालने का दम केवल उसी में है।

एफआईआई और हेज फंड भी कम नहीं: एफआईआई और वैश्विक हेड फंड भी अपना स्वार्थ साधने के लिए भारतीय शेयर बाज़ार का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। सरकार ने उन्हें ऐसा करने की पूरी छूट दे रखी है। घरेलू म्यूचुअल फंड मार्च तिमाही के अंत में एनएवी बढ़ाने के लिए बाज़ार को मैनुपुलेट करते हैं तो एफआईआई और हेजफंड हर तिमाही के अंत में ऐसा करते हैं। मार्च की तिमाही उनके लिए वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही नहीं, बल्कि साल की पहली तिमाही होती है तो उनका खेल बदस्तूर जारी रहता है। दिसंबर तिमाही में उनका असली खेल चलता है। वे अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए बाज़ार को चढ़ाते हैं। इसलिए शॉर्ट सेलर्स को उनसे पंगा लेना हज़ार गुना भारी पड़ सकता है। एफआईआई इस साल जनवरी से अब तक हमारे शेयर बाज़ार से 1,46,002 करोड़ रुपए निकाल चुके है, जबकि साल 2024 में कुल मिलाकर 427 करोड़ रुपए ही डाले थे। हमारे शेयर बाज़ार के कदमताल करते जाने की एक बड़ी वजह एफआईआई का ठंडा रुख ही है।

कॉरपोरेट क्षेत्र की कारस्तानी: हमारे शेयर बाज़ार की दुखद हकीकत यह भी है कि यहां कंपनियों के प्रवर्तक जमकर खेल करते हैं। अपने यहां इनसाइडर ट्रेडिंग के नियम इतने लचर हैं कि उन पर कोई हाथ नहीं रख पाता। अगर किसी वजह से प्रवर्तकों का खेल पकड़ भी लिया गया तो वे कंसेट ऑर्डर के वैधानिक प्रावधान के तहत बिना अपना गुनाह कबूल किए पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी को निश्चित रकम देकर रफा-दफा हो जाते हैं। बाज़ार में सक्रिय हर कारोबारी कंपनियों के खेल से वाकिफ है। छोटी कंपनियों के प्रवर्तक ऑपरेटरों को लाखों शेयर का उपहार देकर अपने शेयर चढ़वाते हैं। फिर भोले-भाले निवेशकों को यही शेयर महंगे भावों पर बेचकर मुनाफा कमाते हैं। वित्त वर्ष के अंत में चौथी तिमाही पर कॉरपोरेट क्षेत्र का खेल अलग से चलता है। इसलिए ट्रेडरों को साल के अंत और छोटी कंपनियों से हमेशा सावधान रहना चाहिए।

जमकर चलता है एनएनआई का नरम-गरम: अपने शेयर बाज़ार के अहम खिलाड़ी हैं हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स (एचएनआई) या अमीरतम लोग। इन पर टैक्स चुराने और ज्यादा से ज्यादा कमाते जाने की हवस सवार रहती है। ये अक्सर सीधे ब्रोकरों के ज़रिए काम करते हैं। बीएसई में हर दिन क्लाएंट्स और प्रापराइटरी श्रेणी के टर्नओवर डेटा में इनकी ताकत की झलक मिल जाती है। इनका पूरा सिस्टम टैक्स प्रणाली को गच्चा देने और कागजी लिखत-पढ़त से बचने पर चलता रहा है। यही इनका ऑपरेटिंग मॉडल है। मोटे तौर पर ऐसे लोगों को सालाना आय एक करोड़ रुपए से ज्यादा होती है। आयकर विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इनकी संख्या वित्त वर्ष 2011-12 में 36,690 हुआ करती थी। वित्त वर्ष 2022-23 तक इनकी संख्या 2.27 लाख तक पहुंच गई। यानी 11 साल में 18.02% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) की बढ़त। इसी दर से यह संख्या बढ़ी होगी तो बीते वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक 3.17 लाख पर पहुंच गई होगी।

वैसे, यह अपने-आप में चौंकानेवाली बात है कि भारत जैसे विशाल देश में, जहां गांवों, कस्बों व गली-मोहल्लों से लेकर शहरों व नगरों-महानगरों में समृद्धि झलकती नजर आ जाती है, वहां महज 3.17 लाख लोग हैं जो साल भर में एक करोड़ से ज्यादा कमाते हैं। जाहिर है कि बहुत सारे अमीर भारतीय ऐसे हैं जो अपने हिस्से का इनकम टैक्स न देने के लिए असली आय छिपा रहे हैं। ऊपर से यह भी हो रहा है कि देश के बहुत सारे अमीर लोग, खासकर एनएनआई टैक्स अधिकारियों की दखलंदाज़ी से आजिज आकर विदेश में जाकर बस रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक अकेले इस साल 2025 में जून तक करीब 3500 एचएनआई देश छोड़कर यूरोप, अमेरिका या अन्य विकसित देशों में जाकर रहने लगे हैं। जो बाहर जाकर नहीं बस पा रहे हैं, वे अपना धन बाहर निवेश कर रहे हैं।

एचएनआई का निवेश जा रहा है बाहर: इसका संकेत गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) से चलाए जा रहे वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (पीएमएस) की बढ़ती ऑफशोर आस्तियों से मिल जाता है। मार्च 2025 में एआईएफ का निवेश विदेशी आस्तियों में 84.2 करोड़ डॉलर था। यह जून 2025 तक लगभग 70% बढ़कर 143 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया। इसी तरह गिफ्ट सिटी से चलाई जा रही पीएमएस की आस्तियां अप्रैल-जून तिमाही में 118 करोड़ डॉलर से बढ़कर 146 करोड़ डॉलर हो गई। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक यह रकम सितंबर तिमाही में 460 करोड़ डॉलर पर पहुंच गईं। जानकार इसकी वजह यह बताते हैं कि 2025 के पहले आठ महीनों में एमएससीआई यूरोप सूचकांक 26% बढ़ा है, जबकि एमएससीआई इंडिया सूचकांक मात्र 2% बढ़ा है। स्पष्ट है कि एचएनआई मुनाफे के पीछे भागते हैं। यह मुनाफा देश के बाज़ार से मिले तो अच्छा। नहीं तो विदेश का रुख करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं।

बाज़ार की पूरी मैपिंग हो दिमाग में: यह सब बताने का हमारे साफ मकसद है कि ट्रेडर के रूप में आप हमेशा ध्यान रखें कि शेयर बाज़ार में सक्रिय सभी लोगों का सम्मिलित मनोविज्ञान व हरकत शेयरों के भाव और शीर्ष सूचकांकों में झलकती है। इन लोगों में देशी-विदेशी संस्थागत निवेशकों के फंड मैनेजर, हाई नेटवर्थ व्यक्ति (एचएनआई), प्रोफेशनल ट्रेडर और सुलझे हुए धनवान निवेशक तक शामिल हैं। इन सबका आत्मविश्वास, आशावाद व सकारात्मक नज़रिया जब हद से पार चला जाता है तो बाज़ार में अतिशय लालच और निश्चिंतता का सुरूर चढ़ जाता है। सकारात्मक तत्व अंततः नकारात्मक हालात पैदा कर देते हैं। इतिहास गवाह है कि जब सेंसेक्स और निफ्टी 25 से ज्यादा पी/ई पर ट्रेड होने लगते हैं तो अधिकांश ट्रेडरों पर बाज़ार की जलती लौ पर पतंगों की तरह जल-मरने का उन्माद छा जाता है। रिटेल ट्रेडर व निवेशक चढ़े हुए शेयरों के पीछे लालच में सब कुछ गंवा देने को आतुर हो जाते हैं। लेकिन यह उन्माद और पागलपन कुछ महीनों बाद ठंडा हो जाता है। शेयर बाज़ार शिखर से उतरकर ज़मीन पर आ जाता है। मगर, साथ में तबाही का मंजर भी ले आता है।

इसलिए शेयर बाज़ार के ट्रेडर को सफलता के लिए स्थितप्रज्ञ होना चाहिए। जूडो-कराटे ही नहीं, गीता तक में भगवान श्रीकृष्ण ने स्थितप्रज्ञ होने की सलाह दी है। ट्रेडिंग में भी बार-बार कहा जाता है कि अपनी भावनाओं को वश में रखो, उन्हें सौदों पर कतई हावी मत होने दो। ऐसा करना ज़रूरी है। लेकिन क्या कामयाबी के लिए इतना पर्याप्त है? आप ही नहीं, दुनिया भर के ट्रेडरों का अनुभव इसका जवाब नहीं में देगा। दरअसल, बाज़ार शक्तियों की पूरी मैपिंग आपके दिमाग में होनी चाहिए।

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