शेयर बाज़ार के रिटेल ट्रेडर को न बहुत ज्यादा, न बहुत कम कमाने का लक्ष्य बनाना चाहिए। आज के दौर में ‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाए’ का भी लक्ष्य बनाएं तो घर-परिवार चलाने के लिए महीने में कम से कम एक लाख रुपए तो चाहिए ही चाहिए। एक लाख रुपए के लिए महीने में 20 दिन की ट्रेडिंग में प्रतिदिन 5000 रुपए का औसत निकलता है। यह औसत है क्योंकि व्यवहार में हो सकता है कि किसी दिन घाटा लग जाए, किसी दिन एकदम ठन-ठन गोपाल रह जाएं और किसी दिन 10-20 हज़ार की कमाई हो जाए। जो भी हो, जैसा भी हो, औसतन 5000 रुपए प्रतिदिन कमाना चुनौती है, जिसे रिटेल ट्रेडर को पूरा करना ही पड़ेगा। इसके लिए उसकी ट्रेडिंग रणनीति क्या होनी चाहिए? लेकिन इस पर बात करने से पहले साफ कर लें कि किसी भी पार्ट-टाइम रिटेल ट्रेडर के लिए स्विंग, मोमेंटम या पोजिशनल ट्रेडिंग से महीने में 40,000-50,000 रुपए से ज्यादा कमा पाना लगभग असंभव है। उसके पास पांच लाख रुपए की भी ट्रेडिंग पूंजी हुई (मतलब नियमतः शेयर बाज़ार में लगाने के लिए कुल एक करोड़ रुपए) और वो महीने में 10% भी सारे खर्चों के बाद कमा ले तो 50,000 रुपए हुए। इसके लिए उसे औसतन हर हफ्ते 12,500 रुपए कमाने होंगे। यानी पांच दिन की ट्रेडिंग में 2500 रुपए प्रतिदिन!
पार्टटाइम नहीं, पूर्णकालिक ट्रेडर का ही बूता: जाहिर है कि प्रतिमाह शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग से एक लाख रुपए कोई पूर्णकालिक ट्रेड़र ही कमा सकता है, पार्टटाइम ट्रेडर नहीं। वो भी तब, जब वो स्विंग, मोमेंटम या पोजिशनल ही नहीं, बल्कि हर दिन इंट्रा-डे और माइक्रो से लेकर स्काल्प ट्रेडिंग तक करे। उसे दिन में कई-कई बार सौदों में घुसना और निकलना पड़ेगा। ऐसे में वो रिस्क को कैसे मैनेज कर सकता है क्योंकि रिस्क को कायदे से संभालकर ही वो कमा पाएगा? बुनियादी शर्त यह है कि उसे रिस्क को न्यूनतम रखते हुए रिटर्न को अधिकतम करना है। उसे ऐसे स्टॉक्स में ट्रेडिंग करनी होगी जो निफ्टी या बैंक निफ्टी जैसे सूचकाकों में होते हुए भी इन सूचकाकों से काफी कम उछल-कूद मचाते हैं। सांख्यिकी की टेक्निकल भाषा में कहें तो उनका बीटा एक से ज्यादा नहीं, बल्कि शून्य से करीब होता है। कम रिस्क क्षमता वाले ट्रेडरों को निफ्टी या बैंक निफ्टी नहीं, बल्कि न्यूनतम बीटा वाले स्टॉक्स को ही हाथ लगाना चाहिए। याहू फाइनेंस की वेबसाइट पर आपको हर प्रमुख स्टॉक का बीटा मिल जाता है। जैसे, इन्फोसिस का बीटा 0.34, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ का 0.22, एचडीएफसी बैंक का 0.58 और आईसीआईसीआई बैंक का बीटा 0.51 चल रहा है। यह पांच साल का मासिक औसत है।
बहना उन्माद में या ट्रेड करना शाति से: अगर किसी को ट्रेडिंग के उन्माद में बहना है, उसके अंदर एड्रेनलीन हॉर्मोन उफन रहा है, स्क्रीन पर पल-पल बदलते भावों को देखकर उसे मज़ा आता है, उसे थ्रिल होता है तो उसे फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस में जाकर निफ्टी और बैंक निफ्टी में ट्रेड करना चाहिए। लेकिन अगर उसे शांति से ट्रेड करना है, अपने रिस्क और तनाव को न्यूनतम रखना है तो उसे इन सूचकांकों में शामिल अलग-अलग स्टॉक्स की थाह लेनी पड़ेगी। कोई चाहे तो इन सूचकांकों के भिन्न अन्य सूचकांकों में शामिल स्टॉक्स को भी पकड़ सकता है। लेकिन उन तक पहुंचने की पद्धति समान होगी। इसलिए हम अपने को फिलहाल निफ्टी-50 और निफ्टी बैंक या बैंक निफ्टी तक सीमित रखते हैं। समझते हैं कि क्या है इनकी संरचना और इनमें शामिल स्टॉक्स की भूमिका। साथ ही सूचकांकों और स्टॉक्स की चंचलता व चपलता में क्या रिश्ता है?
क्या हैं निफ्टी और बैंक निफ्टी: निफ्टी-50 में 50 स्टॉक्स हैं तो निफ्टी बैंक में केवल 12 स्टॉक्स। निफ्टी बैंक के 12 स्टॉक्स में से पांच बैंक – एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया निफ्टी-50 में भी शामिल हैं। 30 सितंबर 2025 तक की स्थिति के अनुसार निफ्टी-50 मे सबसे ज्यादा 12.87% का भार एचडीएफसी बैंक और उसके बाद 8.52% का भार आईसीआईसीआई बैंक का था। उसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज़ 8.18% भार के साथ तीसरे नंबर पर था। वहीं, निफ्टी बैंक में भी सबसे ज्यादा 28.49% भार के साथ एचडीएफसी बैंक पहले नंबर और आईसीआईसीआई बैंक 24.38% भार के साथ दूसरे नंबर पर था। 31 अक्टूबर 2025 के बाद ताज़ा स्थिति के मुताबिक निफ्टी-50 में एचडीएफसी बैंक पहले से थोड़ा कम भार 12.78% के साथ अब भी सबसे ऊपर है। लेकिन उसके बाद 8.53% भार के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज़ दूसरे नंबर पर आ गया और 8.14% भार के साथ आईसीआईसीआई बैंक तीसरे नंबर पर खिसक गया। इसी तरह बैंक निफ्टी में एचडीएफसी बैंक का भार घटकर 27.97% और आईसीआईसीआई बैंक का भार घटकर 23.01% हो गया है।
असल में सूचकांकों में कंपनियों का भार उनकी चुकता पूंजी, ट्रेडिंग वोल्यूम और भावों के बढ़ने जैसे कई कारकों से निर्धारित होता है। भार का फैसला हर महीने होता है। अगर किसी कंपनी के शेयर का भाव गिरता है तो महीने के खत्म होने पर सूचकांक में उसका भार घट जाता है। वहीं शेयर के भाव बढ़ने पर सूचकांक में कंपनी का भार बढ़ जाता है। जैसे, 1 नवंबर 2025 को जारी डेटा में 31 अक्टूबर 2025 तक की स्थिति के अनुसार सूचकांकों की संरचना और उनमें शामिल स्टॉक्स के भार बदल दिए गए।
सूचकांकों में भार से लेकर संरचना तक: सूचकांकों का स्वरूप ऐसा है कि उसमें ऊपर से गिने-चुने स्टॉक्स ही निर्णायक होते हैं। मसलन, निफ्टी-50 में ऊपर के सात स्टॉक्स का ही भार 46.17% है। ये सात स्टॉक्स ही निफ्टी को इतना हिला सकते हैं कि बाकी 43 में क्या चल रहा है, इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता। बैंक निफ्टी की बात करें तो उसके 12 स्टॉक्स में से अकेले एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक का ही सम्मिलित भार 50.98% है। इसलिए इस सूचकांक के बाकी दस स्टॉक्स क्या करते हैं, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। यह भी नोट करने की बात है कि निफ्टी-50 में अकेले वित्तीय सेवाओं में सक्रिय कंपनियों का भार 36.33% है जो महीने भर पहले 36.47% था। वहीं, आईटी कंपनियों का भार 9.91% पर स्थिर है। लेकिन इनके बीच में ऑयल, गैस व ईंधन कंपनियां 10.12% भार के साथ दूसरे नंबर पर आ गईं। सितंबर 2025 में यह क्षेत्र 9.79% भार के साथ निफ्टी-50 में तीसरे नंबर पर था।
सूचकांकों के बारे में दूसरी बात ध्यान रखने की है कि उनमें शामिल स्टॉक्स कभी भी बदले जा सकते है। इनमें जो भी स्टॉक्स शामिल रहते हैं, वे स्थाई या हमेशा के लिए नहीं होते। निफ्टी-50 और बैंक निफ्टी में से कुछ स्टॉक्स निकालकर उनकी जगह दूसरे स्टॉक्स लाए जा सकते हैं। तीसरा मसला इंडेक्स म्यूचुअल फंडों का है। इन्हें पैसिव फंड कहा जाता है। इनके फंड मैनेजर अपनी स्कीम के धन से उसी अनुपात में निफ्टी या बैंक निफ्टी जैसे सूचकांकों के स्टॉक्स खरीदते हैं जितना भार उनका सूचकांक में रहता है। जैसे ही सूचकांक ही संरचना बदलती है, फंड मैनेजर भी स्टॉक्स का चयन व अनुपात बदल देता है। इंडेक्स फंड लिस्टेड होते हैं और इनमें काफी खरीद-बिक्री होती रहती है। अपने यहां पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने नियम बना रखा है कि म्यूचुअल फंड शॉर्ट सेलिंग नहीं कर सकते हैं। इसलिए वे भी हमेशा बाज़ार या सूचकांकों के बढ़ने पर ही दांव लगाते हैं।
ऑपरेटर करते हैं सूचकांकों को मैन्यूपुलेट: अगर आप सूचकांकों में ट्रेड करके कमाना चाहते हैं तो इन सारे कारकों को ध्यान में रखना पड़ेगा। साथ ही यह भी ध्यान में रखें कि निफ्टी-50 और बैंक निफ्टी को मैन्यूपुलेट किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा। बाज़ार में बहुत सारे ऑपरेटर सक्रिय हैं जो खेल डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी के आसपास जमकर करते हैं। एचडीएफसी बैंक का शेयर बढ़ने के बावजूद निफ्टी को बढ़ने से रोकने के लिए रिलायंस, इन्फोसिस, लार्सन एंड टुब्रो और स्टेट बैंक जैसे शेयरों का सहारा ले लिया जाता है। ऐसा ही खेल बैंक निफ्टी में भी किया जाता है। पहले भी बाज़ार में पांच शेयर की तेज़ी और चार शेयर की तेज़ी की बातें कही जाती थी। आज भी अपने यहां बाज़ार को छकाया जाता है। ऐसे में सच कहें तो निफ्टी और बैंक निफ्टी जैसे सूचकांकों में ट्रेड करना बेहद चुनौती भरा है। सैद्धांतिक रूप से लगता है कि ये सूचकांक हैं तो इनमें चंचलता-चपलता या वोलैटिलिटी कम होगी। लेकिन व्यवहार में ये औसत जेब और कमज़ोर दिल वाले ट्रेडर को चकरघिन्नी बना देते हैं। इसलिए अगर आप मानसिक रूप से बहुत-बहुत चुस्त, बहुत-बहुत मजबूत और बेहद दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नहीं हैं तो आपको निफ्टी और बैंक निफ्टी जैसे सूचकांकों के भरोसे ट्रेड नहीं करना चाहिए। इससे महीने में एक लाख कमाने की बात तो छोड़िए, आप एक हफ्ते में ही अपनी सारी ट्रेडिंग पूंजी स्वाहा कर सकते हैं।
सूचकांकों के अलग-अलग स्टॉक्स का सहारा: जमकर कमाना है और रिस्क भी कम से कम लेना है। कैश सेगमेंट से महीने में एक लाख कमाना बेहद मुश्किल है। सूचकांकों की फ्यूचर्स ट्रेडिंग में लफड़े ही हैं और जोखिम भी भयंकर है। ऐसे में सूचकांकों में शामिल स्टॉक्स की फ्यूचर्स ट्रेडिंग ही अच्छी कमाई का माध्यम बन सकती है। इसमें भी वही स्टॉक्स जिनका बीटा कम है यानी जो सूचकांकों की अपेक्षा कम पगलाते हैं। ये एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, इन्फोसिस, रिलायंस, टीसीएस, आईटीसी, मारुति, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंदा, स्टेट बैंक या प्रमुख सूचकांकों में शामिल कोई भी स्टॉक्स हो सकते हैं। ये अकेले स्टॉक्स हैं। सूचकांकों की तरह इनके साथ कोई दूसरा नत्थी नहीं है। ये या तो बढ़ सकते हैं या गिर सकते हैं। आपको चार्ट के अध्ययन से इनकी सही दिशा पकड़नी है। अगर दिशा गलत हो गई तो कोई आपको बचा नहीं सकता। इसलिए आपको हर हाल में सौदे की दिशा सही रखनी होगी।
अंतिम फैसला आपको ही करना होगा: अकेले स्टॉक में ट्रेड कर रहे हैं तो सूचकांकों की तरह उसे सम करनेवाले कोई दूसरे स्टॉक्स नहीं होंगे। इसलिए हो सकता है कि आप जमकर कमा लें। लेकिन साथ ही आशंका है कि आप जमकर गंवा दें क्योंकि अकेले स्टॉक्स में चंचलता-चपलता अधिक रह सकती है। ऐसे में पहली सावधानी यह है कि कम बीटा वाला स्टॉक ही ट्रेडिंग के लिए चुनें। स्टॉक फ्यूचर्स में ट्रेड करना अपेक्षाकृत आसान होता है और उसमें निफ्टी या बैंक निफ्टी की तुलना में एकमुश्त पूंजी भी कम लगती है। जिन धन में इंडेक्स फ्यूचर्स का एक लॉट आएगा, उसमें स्टॉक फ्यूचर्स के कई लॉट आ सकते हैं। फिर भी जिस तरह हर इंसान अलग-अलग होता है, उसी तरह शेयर बाज़ार के ट्रेडर भी भिन्न होते हैं। सबकी जेब, रिस्क लेने की क्षमता, अंदाज़ और तेज़ी व दक्षता अलग होती है। ट्रेडिंग का कौन-सा तरीका, कौन-सी शैली आपके माफिक पड़ेगा, यह अंततः आपको खोजकर अपने अभ्यास से निकालनी होती है। आपको तय करना है कि आपको इंडेक्स ट्रेडिंग करनी है या उसमें शामिल अलग-अलग स्टॉक्स में ट्रेडिंग करनी है। इन्हीं में से कोई एक तरीका अपनाकर आप महीने में शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग से एक लाख रुपए कमा सकते हैं। आज भी अपने ही बाज़ार से बहुत से ईमानदार प्रोफेशनल ट्रेडर अच्छा-खासा कमाकर मौज कर रहे हैं।
